एक दिन खाली हथवा,सब कुछ छोड़ी के जाये के पड़ी--


एक दिन खाली हथवा
एक दिन खाली हथवा,सब कुछ छोड़ी के जाये के पड़ी--
छूटिहें बेटी-बेटा माई -
संगवा जईहें न कमाई-
रोवत तिरिया छोड़ी के इहवां,खाली जाये के पड़ी -
जोरत रखला पाई-पाई -
निशि-दिन हमहीं क दुहाई-
छोड़ी के महल अटरिया,इहवां खाली जाये के पड़ी-
कईला गरब तूँ तन-धन पाई -
तृष्णा लोभ सभैं अधमाई -
एक दिन बांस के डोलिया चढ़िके ,इहवां से जाये के पड़ी-
जपला कबहूँ न राम के भाई-
अंतिम समय निकल भी जाई-
सुगना उड़ते खाली पिजड़वा ,छोड़ी के जाये के पड़ी-
रहला लोभ लाग में भाई-
कईला काम ना तूँ संकुचाई -
छूटीहें बाबुल घरवां नईहर,ससुरा जाये के पड़ी,-
अइहें गुपुत बुलावा भाई -
केहुवे समुझ ना तनिको पाई-
चहबा केतनों ना तूँ जायल,-ऊहंवा जाये के पड़ी!


 :
कवि: राकेश कुमार पाण्डेय
 सादात,गाजीपुर


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