**जबरदस्ती कहीं यारों ईश्क़ थोड़ी होता है,**
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जबरदस्ती कहीं यारों ईश्क़ थोड़ी होता है |
तेरे लिए बहुत रोया हूँ परेशान रहा हूँ।
एक नजर तुझे देखने को बेचैन दिन रात रहा हूँ,
बिना बात तेरे नाम से यहाँ बहुत बदनाम रहा हूँ।।
एक तेरी चाहत में इतना मशगूल रहा हूँ,
के इश्क के सारे रस्मों रिवाज से दूर रहा हूँ।
लुटा कर तेरी चाहतों में अपनी ये खुशियां सारी,
मैं खाली हाथ था और मैं खाली हाथ रहा हूँ।।
कभी चाहा ही नही तुझे मैं परेशान करूँ,
मैं परेशान था खुद ही और मैं परेशान रहा हूँ।
जबरदस्ती कहीं यारों ईश्क़ थोड़ी होता है,
तुम अपनी जैसे चाहो गुजारो मैं अपनी गुजार रहा हूँ।।
उन्हें नही हमसे मोहब्बत ना सही लेकिन,
मैं अपनी मोहब्बत को अपने दिल मे संवार रहा हूँ।
मुझे तो इतना ही काफी है एक तरफ़ा प्यार में हूँ मैं,
खुदा की इबादत और खुद के ऐतबार में हूँ मैं।।
लोग अब भी तो दीवाना मुझे तेरा ही कहते है,
बस इसी सहारे पे अपना जीवन गुजार रहा हूँ मैं।।
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कवि प्रदीप सुमनाक्षर
दिल्ली , इंडिया
बहुत बहुत शुक्रिया।।मंगल ज्योति।।
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