गुड़िया की मन्नत

 
गुड़िया की मन्नत -1
गुड़िया बहुत छोटी थी। सिर्फ़ छह बरस की। उसकी माँ सुनीता दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा करती थी। वो अपनी माँ के साथ काम पर जाया करती थी।

 उसे टीवी देखने का बहुत शौक था। जिस घर में भी उसकी माँ काम करती, उतनी देर वो वहां बैठकर टीवी देख लेती थी। उतने में मगर उसका जी कहाँ भरने वाला था।मां से पूछती - "अम्मा, हमारे घर में टीवी क्यों नही हैं?"

 उसकी माँ उसके प्रश्न से बचते हुये उत्तर देती -" लल्ली, टीवी बड़े लोगों का शौक है। बंसी वाले ने चाहा तो दिलवा देंगें एक ठो टीवी तुमको किसी दिन।"

 गुड़िया मन मसोस के रह जाती। कितने अच्छे प्रोग्राम आते हैं टीवी पर। कार्टून, फिल्में, गाने। माँ के काम के चक्कर में सब आधे अधूरे रह जाते है। उसे पता ही नही चल पाया कि आज प्रेरणा की शादी अनुराग से हो पायी कि नही। छोटा भीम उस कालिया नाग को हरा पाया कि नही। आह...सारुख खान का गाना आ रहा था माँ ने पूरा देखने ही नही दिया। सूर्यवंशम उसकी सबसे पसंदीदा फ़िल्म थी। उसे छोड़ते समय तो आफ़त ही मचा देती थी। पर जानती थी माँ के सामने एक न चलने वाली।

 एक दिन उसने देखा मेमसाब के यहां बहुत बड़ा वाला टीवी आ गया। जो एकदम दीवार से चिपक गया था जैसे कि कोई तस्वीर। उसकी आंखें मंत्र मुग्ध सी स्क्रीन पर चिपक गयीं। वो टीवी में चल रहे गाने को एकटक देखती रह गयी......."आओ कभी हवेली पर...." । क्या सुंदर रंग...बड़े बड़े चित्र, गूंजती हुई आवाज़। सोचने लगी-"भैया ने बताया तो था एक बार वो सनीमा देखने गया था। बड़ा बड़ा पिक्चर, तेज़ आवाज़ आती है उसमें। अच्छा तो यही है सनीमा।"

 तभी उसने मेमसाब को माँ से बात करते हुये सुना- "सुनीता,अगर तुझे ये पुराना वाला टीवी चाहिये तो बता, दो हज़ार में बेच दूंगी। सस्ता ही सही पर तेरे लिये कर सकती हूँ। "

"ठीक है मेमसाब सोच कर बताती हूँ।"- असमंजस में फंसी सुनीता ने कहा।

 एक तरफ़ किराने की दुकान का कर्जा, दूसरी तरफ सोनू की पढ़ाई, फिर उसका मर्द रोज रात में लड़ झगड़ कर रुपये छीन ले जाता है। कैसे खरीदे आख़िर वो टीवी।

 गुड़िया ने मां के गले में हाथ डाल कर कहा- "अम्मा ले लो न टीवी। हम कभी आज तक सूर्यवंसम पूरी नही देख पाये हैं।"

"नही गुड़िया, हमारे पास अभी उतना पैसा नही है।"

गुड़िया ज़िद मचाने लगी। "नही अम्मा , तुमको टीवी लेना ही पड़ेगा। हमको दूसरों के घर टीवी नही देखना। जाओ हम खाना नही खायेंगें।"

आखिर सुनीता को गुड़िया का मन रखना ही पड़ा। उसने 500 रुपये चार महीने अपनी तनख्वाह से कटा लेने का मन बना लिया।

 आख़िरकार दीवाली से पहले वो छोटा सा, उनकी झोपड़ी में बेढंगा सा लगने वाला, पुराने चलन का, डब्बा वाला टीवी मेज पर सज गया। गुड़िया तो खुशी से बौरा गयी। अपनी सारी सहेलियों को बुलाकर लायी। ताली बजा बजा कर कूद रही थी। सुनीता गुड़िया की खुशी देखती तो अपने सारे कष्ट भूल गयी।

 दीवाली की रात अपनी खोली में सुनीता अपने दोनों बच्चों के साथ पूजा कर रही थी।लक्ष्मी मैया और गणेश देवता की आरती की।प्रसाद चढ़ाया फिर बच्चों से कहा भगवान जी से कोई चीज़ मांग लो।गुड़िया ने मन्नत मांगी -

 "लक्ष्मी जी मालकिन का खूब सारा पैसा देना। जिससे वो अपने घर के लिये नई नई चीज़े खरीद लिया करें। और अपने घर की पुरानी चीज़े जैसे गैस, फ्रिज, कूलर हमको दे दिया करें। "

 सुनीता चौंक गयी। फिर उसने सोचा - "गुड़िया ठीक ही तो कहती है। हम अपनी मड़ैया जितनी भी साफ़ रख लें ,लछमी जी तो बड़े घरों की साफ सफाई देखकर ही खुस होती हैं। तबहिं तो बंगलों में ही जाती है, झोपड़ियों में आने का उनको टैम कहाँ?"

 उसने दुआ मांगी- "लक्ष्मी जी हम बड़े लोगों के घरों में झाड़ू पोछा करते रहें, तुम उसी से खुश होकर हम पर कृपा बनाये रखना।

"बोलो लक्ष्मी मैया की जय ! "

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     ट्विंकल तोमर सिंह 
   लखनऊ , उत्तर-प्रदेश 


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