जीवन क्यों है.....

0
जीवन क्या है...
गिरी की गहन कंदराओं सा,
भाग्य चक्र के विषम वीथिकाओं सा,
कभी गूढ़, कभी सरल,
कभी प्रखर अनल,
कभी शीतल जल सा...
जीवन कैसा है...
कभी निर्गुण निराकार,
साक्षात ओमकार सा,
कभी चौसंठ कलाओं की माधुरी लिए,
सरस प्रेम का स्वरूप,
जैसे साकार सा...
जीवन क्यों है...
कभी स्नेह रस से सिक्त,
मृदुल मुस्कान सा,
कभी रौद्र से रुद्र की,
क्रुद्ध फुफकार सा ...
परन्तु...
हर रूप में प्रिय,
हर स्वरूप में सरल,
जीवन के वातायन से,
निश्छल पलकें झपकाए,
झाँक रहा,
समृद्ध कल...
******************
Lakhanpur, Chhattīsgarh, India

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)
3/related/default