सब दान से बढ़कर है ये

0
" कन्यादान "
************


कन्यादान 
सब दान से बढ़कर है ये
कन्यादान रिवाजो में
देता है बाबुल हृदय का टुकड़ा
वो गैरो के हाथो में...
रख दिल पर पत्थर वो तो
करता रस्म विदाई का
भर नयन मे अश्क खुशी के
करता रस्म अदाई का....

बेटी ने कातर स्वर में
पुछा प्रश्न घरवालो से
तोड़ रहे हो क्या तुम मुझको
अपने बगिया के डाली से....
पापा मै तो फुलवारी हूँ
तेरे सुंदर महलो की
आज मुझसे क्युँ पूजन करवाते
अंतिम आँगन की देहरी की....

देख बेटी की अश्रु धारा
पिता का दिल झकझोर दिया
पुछ रही है बिटियाँ रानी
पापा क्या सचमुच तूने मुझको छोड़ दिया...
रात-रात भर जिसके सपने को
पूरा करने को न सोया था
आज वह पिता को देखो
कितना फूट-फूट कर रोया था।

*********************








स्निग्धा रूद्रा
धनबाद ,झारखंड


आप भी अपनी कविता,कहानियाँ,लेख हमें लिख भेजिए !

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)
3/related/default