मोर चुनरिया भीजे न

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मनीषा श्रीवास्तव

मौसम हो सावन और बरसात का झूले , कजरी का उल्लास हो उत्सव सा तो देखते ही बनता हैं !

  हिंदी शब्द कजरा या कोहल से प्राप्त कजरी, उत्तर प्रदेश और बिहार में लोकप्रिय अर्द्ध शास्त्रीय गायन की एक शैली है। इसका प्रयोग अक्सर अपने भावनाओ और सावन मौसम का सुन्दर उल्लेख उत्सव के लिए वर्णन करने के लिए किया जाता है, क्योंकि काले मानसून बादल गर्मियों की आसमान में लटकता है, और शैली बरसात के मौसम के दौरान उल्लेखनीय रूप से गाया जाता है।

यह सीती गीतों की श्रृंखला में आता है, जैसे चैती, होरी और सवानी, और परंपरागत रूप से उत्तर प्रदेश के गांवों और कस्बों में गाया जाता है: बनारस, मिर्जापुर, मथुरा, इलाहाबाद और बिहार के भोजपुर क्षेत्रों के आसपास।




मिर्जापुरी कजरी सुनिए मनीषा श्रीवास्तव जी की आवाज और उनकी टीम की प्रस्तुति .......


मेघा गरजे छने-छने गर्जन सुन मोर हिया डेराईल।
पानी के मनमानी बिछिया जाने कहाँ हेराईल।
बैरी भईली हमर उमिरिया हो चुनरिया भीजे न...


एगो बड़हन इंतजार के बाद हम रउवा लोग खातिर लेके हाजिर बानी मिर्जापुरी कजरी



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स्वर- मनीषा श्रीवास्तव
गीत- डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना


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