सूखा पीड़ित किसानों पर एक ग़ज़ल |
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मौसम ने क़हर ढाया दहशत है किसानों में ,
दम तोड़ती हैं फ़सलें खेतों-खलिहानों में!
धरती की गुज़ारिश पर बरसे ही नहीं बादल ,
तब्दील हुई मिट्टी खेतों की चटानों में!!
थक हार के कल कोई रस्सी पे जो झूला है,
इक ख़ौफ़ हुआ तारी मज़दूर - किसानों में!
क्यूं कैसे मरा कोई क्या फ़िक्र हुकूमत को,
पत्थर की तरह नेता बैठे हैं मकानों में!!
अब गांव की आँखों में बदरंग फ़िज़ाएं हैं ,
खिलती है धनक लेकिन शहरों की दुकानों में!
क्यूं रूठ गई कजरी दिल जिसमें धड़कता था,
क्यूं रंग नहीं कोई अब बिरहा की तानों में!!
कवि:देवमणि पांडेय