ये है......जाने दीजिए नाम जान कर क्या करेंगे... लक्ष्मी ,संतोषी गुड़िया ,मुनिया कोई भी चुन लीजिए... और इसकी कहानी..वो भी उठा लीजिए हाशिये पर पड़े सैकड़ों किस्सों से....आवाम का कोढ़ से भरा हुआ वो कोना है ये जो दिख जाए तो भी घाव नज़रंदाज़ किये जाते हैं....सभ्यता और आधुनिकता का लिबास पहने हम शरीफों की बस्ती के लोगो की नज़रों में ये लोग कोई मायने नहीं रखते हैं....इनकी कहानी में अचानक कूड़े से निकली सफलता नहीं होती इसलिए वो हमें आकर्षित नही करती और दुनिया तो है ही चमक दमक की दीवानी...बेरंग दीवारे नापसन्द सभी को हैं पर रंग भरने का हौसला और जज़्बा कोई नहीं दिखाना चाहता...।।
Clicked by Anadi Shukla |
ये कहानी मिलती थी मुझे अक्सर...
सिग्नल पर कभी बच्चा बन..
कभी फटे कपड़ों में ढंकते तन..
कभी किसी ढाबे के किनारे में...
कभी दीवाली की रौनक से सजे बाज़ारों में....
ये कहानी है जो हर बार मुझसे टकराती थी...
बोलती थी मुझे की एक बार ही सहीं पढ़ कर देखो....
माना कि भीख मांग रही हूं मैं पर शौक नहीं मजबूरी है..
तुम जितना ही ज़िंदा रहना मेरे लिए भी तो ज़रूरी है....
आज आखिर मैंने पन्ने पलट लिए और ...
वो सूख चुके हरे ज़ख्म भी देख लिए...
इस कहानी की शुरुआत में मां थी जिसने इसे जन्म दिया...
फिर
कभी किसी ने चुराया कभी किसी ने बेच दिया...
कभी खो गई ये बड़े बड़े बाज़ारों में...
कभी पाया इसे किसी ने सड़को में चौबारों में....
फिर पहुंच गई ये कहानी जाने कैसे दल दल में..
बदल गई किस्मत उसकी हर बीते हुए पल-पल में...
कुछ को तो सुध नहीं कि कौन कहां से आया है..
इस भिखमंगी के दलदल में किसने उसको पहुंचाया है...
फिर हाथ कभी तोड़े गए और आंखें भी कुछ फोड़ी गयी..
लाचारी पैसे दिलवाती ये गांठ बांध कर छोड़ी गई...
अब वो दुआ में नही चौराहों पर हाथ फैलाती है...
पलकें उसकी यूँ ही अश्र बहाती है....।।
सिग्नल पर कभी बच्चा बन..
कभी फटे कपड़ों में ढंकते तन..
कभी किसी ढाबे के किनारे में...
कभी दीवाली की रौनक से सजे बाज़ारों में....
ये कहानी है जो हर बार मुझसे टकराती थी...
बोलती थी मुझे की एक बार ही सहीं पढ़ कर देखो....
माना कि भीख मांग रही हूं मैं पर शौक नहीं मजबूरी है..
तुम जितना ही ज़िंदा रहना मेरे लिए भी तो ज़रूरी है....
आज आखिर मैंने पन्ने पलट लिए और ...
वो सूख चुके हरे ज़ख्म भी देख लिए...
इस कहानी की शुरुआत में मां थी जिसने इसे जन्म दिया...
फिर
कभी किसी ने चुराया कभी किसी ने बेच दिया...
कभी खो गई ये बड़े बड़े बाज़ारों में...
कभी पाया इसे किसी ने सड़को में चौबारों में....
फिर पहुंच गई ये कहानी जाने कैसे दल दल में..
बदल गई किस्मत उसकी हर बीते हुए पल-पल में...
कुछ को तो सुध नहीं कि कौन कहां से आया है..
इस भिखमंगी के दलदल में किसने उसको पहुंचाया है...
फिर हाथ कभी तोड़े गए और आंखें भी कुछ फोड़ी गयी..
लाचारी पैसे दिलवाती ये गांठ बांध कर छोड़ी गई...
अब वो दुआ में नही चौराहों पर हाथ फैलाती है...
पलकें उसकी यूँ ही अश्र बहाती है....।।
लिखने के लिए इतना है जितना बोला जाए उतना कम है...पर अगली बार किसी भी भीख मांगने वाले बच्चे से मिलें आप तो उससे नफरत मत करिए...उसको दुत्कारिये मत...पता नहीं कौन सी परिस्थिति उसको ऐसी जगह खींच लाई हो....उससे बात करिये...शायद आप उसकी कुछ और तरीके से मदद कर पाएं...या एक फोटो ले कर सोशल मीडिया में अपलोड करिये किसी बच्चे को हम शायद उसके घर तक पहुँचा दें...शुरूआत कहीं से तो करनी ही होगी....।
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