सबके हित शुभ उद्गार लिये जीता हूँ। |
कोमल भावों में प्यार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उद्गार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उद्गार लिये जीता हूँ।
भोर चिरैया चहचह चहके,
साँझ लौट घर आये।
दिनभर नीलगगन में बिचरे,
नरम पंख फैलाये।
ना हाथ गुलेल, कटार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उद्गार लिये जीता हूँ।
साँझ लौट घर आये।
दिनभर नीलगगन में बिचरे,
नरम पंख फैलाये।
ना हाथ गुलेल, कटार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उद्गार लिये जीता हूँ।
मेरी बेटी नित है कहती-
'पापा जल्दी आना।'
पत्नी तकती राह शामको,
लेकर पानी- खाना।
उनकी खातिर सब भार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उद्गार लिये जीता हूँ।
'पापा जल्दी आना।'
पत्नी तकती राह शामको,
लेकर पानी- खाना।
उनकी खातिर सब भार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उद्गार लिये जीता हूँ।
बालक था, जब समझ नहीं थी,
कुछ ना मैं बोला था।
माँ कहती थी, माँ ही कहते,
मैंने मुँह खोला था।
माँ की ममता सौ बार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उरगार लिये जीता हूँ।
कुछ ना मैं बोला था।
माँ कहती थी, माँ ही कहते,
मैंने मुँह खोला था।
माँ की ममता सौ बार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उरगार लिये जीता हूँ।
पीड़ाओं को सहते- सहते,
सारी उमर गुजारी।
हाथ न फैले कभी, कहीं, ना
बतलाई दुश्वारी।
उनको वन्दन, सत्कार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उद्गार लिये जीता हूँ।
सारी उमर गुजारी।
हाथ न फैले कभी, कहीं, ना
बतलाई दुश्वारी।
उनको वन्दन, सत्कार लिये जीता हूँ।
सबके हित शुभ उद्गार लिये जीता हूँ।
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