अरे!श्रेष्ठ मानव जगती के-मानवता स्वीकार करो

अरे!श्रेष्ठ मानव जगती के-
मानवता स्वीकार करो-
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             अरे!श्रेष्ठ मानव जगती के-मानवता स्वीकार करो
राष्ट्र बचाने का यह न्यौता-
भेज रहा मंजूर करो-
हृदय कलुषता जाति-धर्म की-
मन-मानस से दूर करो।

अरे!श्रेष्ठ मानव जगती के-
मानवता स्वीकार करो-
एक रक्त मन-मानुष तन-मन-
ऊँच-नीच इंकार करो-
जाति-पांति मत-मज़हब सीमा-
अहंकार प्रतिकार करो-
प्रेम राग ममता हो उर में-
पीड़ित जन उपकार करो-

पैगम्बर अवतार पुरुष से-
मन शुद्धि उपचार करो-
भय हिंसा अरु भूख अशिक्षा-
मिटे यही सत्कार्य करो-
गीता वेद कुरान की संगत-
मन बुद्धि निर्विकार करो-
आपस में लड़कर क्यों मिटते-
सत्य हृदय संचार करो-

सभी धर्म पावन निधि अनुपम-
केवल अंगीकार करो-
ईष्ट एक सर्वत्र है सत्ता-
पूजा पद्धति प्यार करो-
दुखद देश की हालत ऐसी-
भ्रष्टाचार निवार करो-
सत्ता लोभी रुग्ण सोच के-
इनसे अब उद्धार करो।

हालत देश की ऐसी क्यों है-
मिलकर यही विचार करो-
बाँट रहें जन जाति धर्म जो-
उनको ना स्वीकार करो-
जाति बोध यदि कट्टरता हो-
न्यौता से इंकार करो-
नहीं जरूरत है मति भ्रष्टों-
कृपया यह उपकार करो।

मानवता जो ईष्ट मानते-
स्वागत हम सौ बार करें-
राष्ट्र से बढ़कर नहीं है कोई-
यदि कोई !!दुत्कार करें-
मानव तन-मन व्यभिचारी का-
बहिष्कार शत बार करें-
अरे!घृणित वह वहशी दानव-
मानवता शर्मसार करे।
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राकेश कुमार पांडेय
हुरमुजपुर,सादात
गाजीपुर,उत्तर प्रदेश

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