चंद पैसों की रज़ा है दिल्ली |
इक छोटे बच्चे की तरह परेशान है दिल्ली !
कभी सुनना अकेले में जब होती है दिल्ली ,
मैंने सुना है रात को दो बजे रोती है दिल्ली !!
मेरे गांव, मेरी माँ से क्यों खफा है दिल्ली ,
सब कुछ छूटा, साली बड़ी बेवफा है दिल्ली !
जलती है, सुलगती है, बुझती है दिल्ली ,
माँ मैं आ रहा हूँ मुझे बहुत चुभती है दिल्ली !!
कहीं ख़्वाब कहीं पेट की आग है दिल्ली ,
कई सवालों का एक जवाब है दिल्ली !
निर्भया रोती है - -देखती है दिल्ली ,
गलियों में, सन्नाटों में चीखती है दिल्ली !!
किधर से आती है किस ओर जाती है दिल्ली ,
प्लेटफॉर्म से जैसे रेल को छोड़ जाती है दिल्ली !
बारिश की पहली बूंद में धुल जाती है दिल्ली ,
सुबह को मिलती है शाम को भूल जाती है दिल्ली !!
रात के अंधेरों में शमां से ढक जाती है दिल्ली ,
सुबह से जगे जगे शाम तक थक जाती है दिल्ली !
किसी गरीब मजदूर सा टूट जाती है दिल्ली ,
गैरों सा मिलती है अपनों सा छूट जाती है दिल्ली !!
कहीं खुले आसमां के नीचे होती है आधी दिल्ली ,
कहीं सड़क कहीं चौराहे पे सोती है आधी दिल्ली !
जरा देख ये तेरे शहर को क्या हुआ है दिल्ली ,
कहीं शोर शराबा, कहीं धुंवा धुँवा है दिल्ली !!
सुकूँ नहीं 'मैकश' , चंद पैसों की रज़ा है दिल्ली ,
जिंदगी गाँव में है ,काले पानी की सजा है दिल्ली !!
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- मिथिलेश मैकश
छपरा, बिहार
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