**मजदूर दिवस पर समर्पित---**
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मजदूर दिवस |
ना हम अपमान से डरते।
नहीं छ्ल छद्म है जीवन-
ना चेहरा ही कई रखते-
नहीं धन लाभ की इच्छा-
ना लालच ही कभी करते-
गरीबी जन्म जग पाकर-
गरीबी से सदा लड़ते-
बिना श्रम लोभ ना धन की-
ना कर्मों से कभी डिगते-
दया की भूख बस प्रभुवर-
तुम्हारी ही शरण रहते-
मुझे पीड़ा बहुत मिलती-
किसी से कुछ नहीं कहते-
सभी अपने हैं सबके हम-
सहज यह कामना रखते-
मैं तन मन बुद्धि का छोटा-
सदा छोटों के संग रहते।
ना संपत्ति है ना शोहरत है-
सतत निज कर्म हैं करते-
क्षमा माँगू सदा झुककर-
यदा गलती कभी करते-
निरा मानव ही मैं भी तो-
हॄदय मानव का ही रखते-
कलुषता दम्भ ना जीवन-
यही बस याचना करते-
सदा परहित खपे जीवन-
यही बस कामना रखते।
मुझे तो मोह है जग से-
प्रकृति के गोद में पलते-
अभावों में सदा जीवन-
उमर बीती सदा लड़ते-
तितिक्षा ही सदा जीवन-
यही श्रृंगार बस करते-
मेरा जीवन है क्षणभंगुर-
हॄदय उपकार बस रखते-
मेरी अनुराग है कविता-
हॄदय की आह से जनते-
कशिश मन वेदना जीवन-
जिसे शब्दों में हैं लिखते-
हॄदय के भाव हैं निर्गुण-
सगुण बन शब्द आते हैं-
हॄदय गत भाव ही सजकर-
मधुर कविता निखरते हैं-
हॄदय गत काव्य हो जिनका-
सहन शक्ति वही रखते-
पराजित हो नहीं सकते-
सदा जीवन से ही लड़ते।
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राकेश कुमार पांडेय
सादात,गाजीपुर
उत्तर प्रदेश