**प्रबल हूँ ,पर हूँ तो प्रभु की ही चेरी**
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प्रबल हूँ ,पर हूँ तो प्रभु की ही चेरी |
घर गृहस्थी में फंसा मैं ,
अपने प्रभु को ही भूल गया
कुछ तो करना होगा
इस मोहमाया से निकलना होगा
मैं मूढ़ मति कैसे इससे पार पाउँ
कोई धर्मगुरु हो तो सदगति पाऊँ
पीछे से हंसने की आवाज़ आई
कोई नही था ??पर कोई तो था
मैं "माया"हूँ जिससे तू भाग रहा है
चल मैं तुझे वो स्थान बताती हूँ
जहाँ भक्ति की राह दिखाई जाती है
मन की भटकन ले आई घर से बाहर
किंकर्तव्यविमूढ़ कदमों ने
पहुँचा दिया एक आश्रम के द्वार
आश्रम की भव्यता मन को लुभा रही थी
गुरु देव की असीम प्रभुता दिखा रही थी
सेवकों ने गुरुदेव तक समाचार पहुंचाया
एक दुखी प्राणी आपकी शरण मे आया
सन्त दरस हरि दरस समाना
सोच मन प्रसन्न था
लम्बी प्रतीक्षा के बाद
मैं गुरुदेव के समक्ष था
अपना दुखड़ा उन्हें सुनाया
मोह माया से ग्रसित हूँ
प्रभु से मिलने को विकल हूँ
वो मुस्कुरा कर बोले
सही स्थान पर आए हो
हम तुम्हारे भोग को छुड़ा कर योगी बनाएंगे
इस मोह माया से सदा के लिए पीछा छुड़ाएंगे
मैं अपने भाग्य को सराह रहा था
अश्रुपूरित नेत्रों से गुरुदेव को निहार रहा था
तभी अचानक आश्रम में अफरातफरी मच गई
विदेशी भक्त के आने की सूचना गुरु तक पहुंच गई
मैंने देखा जो अभी मुझे ज्ञान सीखा रहे थे
वो गेरुए पटके में भी चमकीला रंग छाँट रहे थे
माया फिर जोर से हँसी
चुपचाप मेरा हाथ पकड़
घर की ओर ले चली
घर पर सब यथावत था
मेरी पत्नी प्रभु का भोग लगा
मेरी थाली सजा रही थी
आज भोजन में अलौकिक स्वाद था
हृदय में ना कोई पाप ना अवसाद था
मन ही मन प्रभु को प्रणाम किया
क्या मेरी अन्नपूर्णा के हाथों में
प्रभु का वास था ??????
घर के कण कण में प्रभु दर्शन हो रहे थे
मेरे तुच्छ विचार लुप्त हो रहे थे
अब की बार माया नही हंसी थी
प्रभु की प्रतिमा के पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी
प्रबल हूँ ,पर हूँ तो प्रभु की ही चेरी
बस ये ही बात समझा रही थी........
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वन्दना शर्मा
गुरुग्राम , इंडिया