रुद्राभिषेक करने का विधान अन्य कथा


रुद्राभिषेक-1
शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा विभिन्न पदार्थो से अभिषेक करना रुद्राभिषेक कहलाता है। शास्त्रानुसार भगवान शंकर रुद्राभिषेक करने से बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं भक्तो की सभी मनोकामनाएं भी अवश्य पूरी करते हैं।

'रुद्रहृदयोपनिषद' में शिव के बारे में कहा गया है कि "सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका" अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। अत: रुद्राभिषेक करने से सभी देवताओं का स्वत: ही पूजन हो जाता है। ज्योतिष के अनुसार कुण्डली के किसी भी ग्रह के अनिष्टकारक योग भगवान शंकर की उपासना तथा रुद्राभिषेक करने से समाप्त होते है।

भगवान शिव को शुक्लयजुर्वेद अत्यन्त प्रिय है कहा भी गया है वेदः शिवः शिवो वेदः। इसी कारण ऋषि मुनियों ने शास्त्रों में शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से रुद्राभिषेक करने का विधान बतलाया गया है।

रुद्राभिषेक-2
जाबालोपनिषद में याज्ञवल्क्य जी ने कहा है कि – शतरुद्रियेणेति अर्थात शतरुद्रिय के सतत पाठ करने से निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे समस्त दु:खों के कारण हैं और 'रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:' अर्थात भगवान शिव मनुष्यो के सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।

हमारे शास्त्रों में विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के लिए अनेक द्रव्यों एवं पूजन सामग्री को बताया गया है। शिव भक्त रुद्राभिषेक पूजन विविध मनोरथ को लेकर अलग अलग विधि से करते हैं। विशेषकर सावन के महीने में अनेक वस्तुओं से रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व है।

रुद्राभिषेक के सम्बन्ध में पुराणों में अनेको कथाएं है।

रुद्राभिषेक-3
शास्त्रों में रुद्राभिषेक के बारे में वर्णित है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से भगवान शिव के शिवलिंग का अभिषेक किया तत्पश्चात अपने सिरों को हवन में अग्नि को अर्पित कर दिया था, इससे भगवान शिव की कृपा से वो त्रिलोक विजयी हो गया।

एक अन्य कथा के अनुसार भस्मासुर ने भगवान शंकर के शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो उस पर भी भगवान कृपालु हो गए और उसे वरदान दे दिया।

शास्त्रों के अनुसार रुद्राभिषेक करने की सर्वोत्तम तिथियों में कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, एवं शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियाँ सर्वोत्तम मानी गयी है। इन तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि, योग्य संतान,ऐश्वर्य और यश की प्राप्ति होती है जातक के सभी संकटो का नाश होता है।

लेकिन श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अति पुण्यदायक एवं शीघ्र फल प्रदान करने वाला माना जाता है|

रुद्राभिषेक कब से प्रारम्भ हुआ:-

रुद्राभिषेक-4
रुद्राभिषेक के बारे में शास्त्रों में कथा वर्णित है इसके अनुसार ब्रह्मा जी की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि के कमल से हुई। जब अपने जन्म का कारण जानने के लिए ब्रह्माजी भगवान विष्णु के पास गए तो विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को उनकी उत्पत्ति के रहस्य के बारे में बताया कि आपकी उत्पत्ति मेरे कारण ही हुई है।

लेकिन ब्रह्माजी यह मानने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं हुए और उन्होंने विष्णु जी युद्द करना शुरू कर दिया, दोनों के बीच में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध के कारण नाराज होकर भगवान शंकर अति विशाल रुद्र लिंग के रूप में प्रकट हुए। ब्रह्मा और विष्णु जी ने इस लिंग का आदि-अंत खोजना शुरू किया, लेकिन जब उनको इस लिंग के आदि अन्त का कहीं भी पता नहीं चला तो उन्होंने हार मान ली और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का अभिषेक किया, इससे भोलेनाथ अति प्रसन्न हुए। मान्यता है कि तभी से रुद्राभिषेक का प्रारम्भ हुआ।

रुद्राभिषेक के सम्बन्ध में एक अन्य कथा भी प्राप्त होती है

कहते है एक बार भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय मृत्युलोक में मनुष्यों को रुद्राभिषेक करते हुए देखकर माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि हे प्रभु पृथ्वी वासी आपकी इस तरह से पूजा क्यों करते है, और इससे क्या फल मिलता है?

तब भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा – जो मनुष्य अपनी किसी भी शुभ कामना को शीघ्र ही पूर्ण करना चाहता है तो वह मेरे आशुतोष स्वरूप का विभिन्न फलो की प्राप्ति हेतु विविध द्रव्यों से अभिषेक करता है। हे पार्वती जो भी मनुष्य मेरा 'शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी' विधि से अभिषेक करता है उसे मैं शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ।

भगवान शिव कहते है कि जो मनुष्य अपनी जिस कामना की पूर्ति के लिए मेरा रुद्राभिषेक करता है वह शास्त्रों में बताये उसी से सम्बंधित द्रव्य पदार्थो का प्रयोग करता है।

रुद्राभिषेक के सम्बन्ध में स्वयं सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने भी कहा है की जब भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है तो स्वयं भोलेनाथ साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है। इस ब्रह्माण्ड में ऐसी कोई भी वस्तु, सुख, कामना नही है जो हमें रुद्राभिषेक से प्राप्त नहीं होती है,
अर्थात रुद्राभिषेक समस्त मनवांछित फलो को प्रदान करने वाला होता है।

शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को जीवन में शुभ फलो के लिए यथासंभव प्रति वर्ष सावन में रुद्राभिषेक अवश्य ही करना चाहिए।
रुद्राभिषेक में भगवान शंकर विधि पूर्वक जल, गंगाजल, पंचामृत, दूध, दही, शहद, घी, शक्कर, इत्र, फलो के रस, गन्ने का रस, सरसों के तेल, चने की दाल, काले तिल, भस्म से अभिषेक करके बेल पत्र, शमी पत्र, मदार के फूल, धतूरा, सफ़ेद पुष्प, कमल गट्टे, कमल के फूल, रुद्राश की माला, सफ़ेद वस्त्र, आदि से श्रंगार किया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार रुद्राभिषेक में भगवान शिव के साथ उनके पूरे परिवार / शिव दरबार का आहवान किया जाता है अत: रुद्राभिषेक को पूरे परिवार और बंधु-बांधवो के साथ मिलकर करना चाहिए।
यदि उस नगर में बेटी, बहन, बुआ, मुँहबोली बेटी आदि रहती हो तो उन्हें भी अनिवार्य रूप ससम्मान अवश्य ही बुलाना चाहिए, इससे वंश, यश, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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   Rishikant Pandey


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