मैं से हम हो जाते हैं |
आलोच्य अन्धड़ से जूझ गया ,
" उत्साह दीया" कह बुझ गया
लोगोँ को है कद्र नहीं तो जलने का भी फख्र नहीं ।
मन बड़ी अधीर अशांत हुआ
तभी "हिमतिया दीये" देख
फिर लगा जैसे निशांत हुआ ।
पर फूंक फांक मिलकर सब ने उसको भी यूं ही पस्त किया।
यह देख डरपोक" समृद्धिया दीप" ले सुख चैन यूं अस्त हुआ ।
शांतिदीप भी कहाँ सबल था और प्रबल अन्धकार हुआ।
मानो इस निविड़ तिमिर का और स्वरुप विस्तार हुआ ।
मगर कनिष्क "उम्मीददीप" जलता हीं रहा निरंतर है।
इसी अखण्ड ज्योत से तो जगमग सब का हीं अंतर है।।
ज्योत से ज्योत मिलकर उम्मीदी ,मैं से हम हो जाते हैं ।
इसी "हम "पर टीका हुआ अलोक नया फिर पाते हैं ।
#धन्यवाद,
दीपावली की आप सभी को अनेकों बधाई । स्याह साम्राज्य से एकजुट होकर लड़ते रहिए ।प्रेम के तेल में भींगोकर जलते रहिए और एक नए उजास को महसूस करते रहिए । एक से अनेक की तरफ बढ़ के मैं से हम बनके इस अंधेरे को दूर करते रहिए और प्रकाश पर्व को अपने अंदर महसूस करते रहिए । एकता के बल को दीपों से समझते रहिए । बहुत बहुत धन्यवाद । जय हो ।
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अनंत प्रकाश ऋषव
जहानाबाद , इंडिया