पत्नी पीड़ित मर्दों का समूह

पत्नी पीड़ित मर्दों का समूह
आज इस चौंकाने वाले विज्ञापन ने 
सोचने पर मजबूर कर दिया..!
आज मैंने एक समूह का विज्ञापन देखा
की जुड़े हमारे साथ जिसे न्याय चाहिये, शरमाइये मत
अगर निज़ात पाना चाहते है घरेलू हिंसा से
                   
     'पत्नी पीड़ित मर्दों का समूह' 

तब से सोच रही हूँ क्या हम जो महिला दिन  मनाते है उसे लाज़मी समझूँ ?
अगर इनकी बातों को सही माना जाय तो हमें किस निष्कर्ष पर आना चाहिये,
अभिमान करना चाहिये औरतों पर या शर्म ?

क्या ये जानकर हमारी गर्दन फ़ख्र से ऊँची कर लें की देखो कैसे औरत मर्द पर भारी है,
या असमंजस में झुका लें...!

माना की आज की नारी प्रबुद्ध और सक्षम है तो क्या अपनी गरीमा खो देनी चाहिये,
माना की कुछ मर्द नरम स्वभाव के हो ओर जीवन में शांति की कामना करते है तो क्या स्त्री को हक़ बनता है की उसका फ़ायदा उठाया जाय...!

ये सिर्फ़ विज्ञापन देखकर ही नहीं कह रही पर आज से मानों ३० साल पहले हमारे पडोस में रह रहे अच्छे खासे पढ़े लिखे इंसान ने अपनी पत्नी के ज़ुल्म से तंग आ कर खुदकुशी कर ली थी..!

ओर शायद आपने भी कहीं सुना होगा आसपास देखा भी हो ये अन्याय होते हुए..!
मतलब समाज में हमारी सोच से विपरीत भी बहुत कुछ एेसा होता है...!

कोई तंग आकर मुखर हो जाता है तो कोई संकोचवश दमन सहते रहता है..
क्या मानसिकता रहती होंगी उन स्त्रीओं की जो इस हद तक जाती होगी,
सक्षम होना क़तई ये नहीं जताता  की तुम स्वामिनी बन जाओ सांसारिक परिभाषा को अपने हाथ में लेकर एक मर्द पर अत्याचार करना विद्वान नहीं मूर्खता की निशानी है...!

एक मर्द को न्याय मांगने निकलना पड़े औरत के हाथों प्रताड़ित होते ये कोई अभिमान करने वाली बात तो हरगिज़ नहीं...!

समान हक़ फ़र्ज़ की बातें जितनी मर्द को लागू होती है उतनी ही स्त्रियों को भी,
हमने ये भी देखा है की कुछ कानून जो स्त्रियों के हक़ में है उसका गैरउपयोग भी होता है उसके चलते स्त्री के प्रति मर्द कोई भी कानूनी कारवाई करने से कतराते है..!
इस वजह से समाज में बहुत सारे किस्से दब जाते है,

Just bcoz स्त्री स्त्री है तो सबकी सहनाभूति की हकदार बनकर बेचारगी की वाहवाही नहीं लूंट सकती..!
स्त्री के सताये उन मर्दों के लिये भी आवाज़ उठनी चाहिये,मेरे इस विचार के साथ तो कुछ प्रबुद्ध विदुषीयाँ भी सहमत होंगी,

हनन करना पाप है तो सहना भी पाप है अगर स्त्री पीड़ित है मर्द के हाथों तो भी आवाज़ उठाएँ ओर मर्द को भी पूरा हक़ है अपना पक्ष रखकर आवाज़ उठाने का...!

ये मुद्दा सभ्य समाज की एक स्त्री को शर्मसार करती छबि है पर हाँ एैसा होता भी है ये कड़वा है।।
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     भावना जीतेन्द्र ठाकर
       बेंगलुरु -कर्नाटक 

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