पैसा बोलता है |
रिश़्तों के हर राज़ खोलता है
सच है कि
पैसा बोलता है
जब रोती हैं रातें
ज़ज़्बात पिघलते हैं
नही होते हैं अपने
जब हालात बिगड़तें हैं
वक़्त तब अपनों के राज़ तौलता है
सच है कि
पैसा बोलता है
रातों-रात जब चमक उठे किस्मत के सितारें
उठाकर जमीं से
मुझे जो फ़लक पर बिठाते
आये नयें रिश़्तों के
मिलने नये तरानें
सच कहते है लोग
भूलों तुम गुज़रे ज़मानें
पैसा ही है जो हर तार जोड़ता है
बिल्कुल सच है ये कि
#पैसा बोलता है।
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स्निग्धा रूद्र
धनबाद , इंडिया