फिर कैसे मैं प्यार लिखूँगा

रोज काल का ग्रास बन रही आसिफा,
फिर कैसे मैं प्यार लिखूँगा 

फिर कैसे मैं श्रृंगार लिखूँगा ।
देश चल रहा नफरत से ही,
फिर कैसे मैं प्यार लिखूँगा ।

वंचित हैं जो अधिकार से अपने,
उनका मैं अधिकार लिखूँगा ।
दुष्टों को मारा जाता है जिससे,
अब मैं वही हथियार लिखूँगा ।

रोज जवान मर रहे सीमा पर,
कब तक मैं उनकी बली सहूँगा ।
मर रही जनता रोज देश की,
कब तक मैं ये अत्याचार सहूँगा ।

आसिफा,ट्विंकल ना जाने कौन-कौन ?
अब इनकी चित्कार लिखूँगा ।
हाँ, देश चल रहा नफरत से ही
फिर कैसे मैं प्यार लिखूँगा ।

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सौरभ कुमार ठाकुर (बालकवि एवं लेखक)
          मुजफ्फरपुर, बिहार

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