अबोली भाषा

 

अबोली भाषा
शशांक को बचपन से ही पप्पा से असाधारण लगाव था। उसके पप्पा पुष्पशील भी उस पर जान छिड़कते, उसका पूरा ध्यान भी रखते। शशांक को छुटपन में चलना सिखाने के लिए वे हर छुट्टी के दिन उसे नौ किलोमीटर दूर स्थित राष्ट्रीय उद्यान की नरम घास पर चलना सिखाने ले जाते ताकि  गिरने पर उसे कम से कम चोट आए। उन्होंने सदैव इसी प्रकार हर क्षेत्र में उसे सशक्त व सक्षम बनाने, उसके व्यक्तित्व को निखारने के भरसक प्रयत्न किये।  शशांक के जीवन के आदर्श पप्पा, स्वयं तो शहर के नामचीन चार्टर्ड अकाउंटेंट थे पर उन्होनें  शशांक पर कभी यह दबाव न बनाया कि वह भी उन्हीं के पेशे को अपनाए। उसकी पसंद के अनुरूप उसका दाखला संगणक विज्ञान स्नातक महाविद्यालय में करवा दिया। शशांक स्वभाव से अंतर्मुख होने के कारण उसके मित्र गिनती के ही थे। प्रायः वह सप्ताहांत अपने पिता के साथ विविध विषयों पर चर्चा करता, सैर सपाटे के लिए कहीं जाता , फिल्म देखने जाता या अपनी पुस्तकालय में अपने पुस्तकों में सर खपाने में खोया रहता।


     

 स्नातकोत्तर अभ्यास के लिए उसके पिता ने जब उसे अमेरिका जाने की सलाह दी तो वह अनमना सा हो गया। विश्व के सर्वोच्च विश्वविद्यालय में शिक्षा पाने की खुशी की तुलना में उसे अब पिता से दूर रहने का दुख अधिक हो रहा था। ऐसा भी नहीं  कि उसे अपनी मम्मी ' वैखरी ', जो संगीत विशाराद की शिक्षा के पश्चात लगभग दो दशकों से अपने संगीत विद्यालय, गायन व अनुशासन के लिए शहर भर में अपना विशेष स्थान रखती हैं शशांक को प्रिय नहीं! वे सदा अपनी संगीत की दुनिया में खोई रहने वाली व मृदु व मित भाषी हैं। शशांक ने अपने मम्मी पापा को कभी ऊंची आवाज़ में बहस तक करते नहीं पाया। मम्मी का स्नेहिल स्पर्श व उनके के गाने या गुनगुनाने के स्वर के उसके भाव विश्व के घर के अभिन्न अंग बन चुके  हैं। पर पिता से दूर रहने की कल्पना भी वह सह नहीं पा रहा था। पप्पा के तर्कों के सामने नतमस्तक होकर वह पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया। मन लगा कर पढ़ाई की तथा कैंपस इंटरव्यू में उसे मनचाही नौकरी भी मिल गई। पिता से उसका लगाव उतना बना रहा। सप्ताहांत में दोनों स्काइप पर घंटों बतियाते रहते। 

      देखते देखते पाँच वर्ष बीत गए। इस बीच पप्पा मम्मी मिलकर एक अच्छा सा बंगला खरीद लिया  व वहीं रहने लगे। इस बंगले में शशांक के रहने तथा काम करने के लिए  कमरे थे व एक बगीचा भी था। पप्पा ने वहाँ के एक एक पौधे से उसका परिचय करवाया था। इस बीच उसने दो बार मम्मी पप्पा को महीने भर अपने पास बुलवा लिया। दूसरी बार तो शशांक ने उन दोनों से सदा के लिए वहीं उसके साथ ही रहने का आग्रह भी किया पर उसके पप्पा व मम्मी को वहाँ नठल्ले रहना रास ना आया। इस पर शशांक ने कहा कि बस यहाँ एक बार ग्रीन कार्ड मिल जाय तो फिर मैं ही वहाँ आता जाता रहूँगा। 

       एक दिन शशांक कार्यालय की बैठक में व्यस्त था कि उसका मोबाइल बज उठा। मम्मी के नंबर से कॉल था। यह उसे खटका व चिंता भी हुई कि अभी तो मुंबई में रात के तीन बजे हैं...  क्या बात हो गई???  शशांक बैठक के बीच से उठ कर बाहर आया। मम्मी ने कहा "पापा आई सी यू में हैं। डॉक्टर ने तुझे तुरंत सूचित करने को कहा है।" " पापा तो अपने स्वास्थ्य के प्रति सदा सजग रहते थे! क्या हुआ उन्हें?" शशांक ने पूछा। "बेटे डॉक्टर ने कहा हृदय का दौरा पड़ा है।" "मम्मी तुम चिंता ना करना मैं तुरंत निकल रहा हूँ।"  कार्यालय व्यवस्थापन ने तुरंत छुट्टी देने में अड़ंगा लगाया तो शशांक ने राजीनामे की पेशकश कर दी... अंत में छुट्टी मिल गई तथा वह पहली उड़ान पर सवार हो गया।

     पर वह पप्पा से मिल ना पाया। वास्तविकता में मम्मी ने फोन किया तब पप्पा  का अकस्मात ही निधन हो चुका था। उसके आने तक पिता का शव शीतपेटी में रखा रहा। अंत्येष्टि के समय उसे आश्चर्य हो रहा था कि वह अपने आप को बाहर से इतना संयत कैसे रखे हुए है जबकि उसके भीतर पल रहे बचपन वाले शशांक की रुलाई थम ही नहीं रही थी।  कर्मकांड उसके हाथों ही होना था। छुट्टी बढ़ने में बड़ी अड़चनें थीं। शशांक ने अपना निर्णय सुना दिया था कि वह कर्मकांड के लिए यहीं रुकेगा! नौकरी रहे या जाए!!

      जिस दिन कर्मकाण्ड संपन्न होने पर सभी रिश्तेदार अपने अपने घर लौटे उसी  शाम को देश के प्रधान मंत्री जी ने कोरोना महामारी के चलते देश भर में लॉक डाउन की घोषणा कर दी।

         एक सप्ताह भर से शशांक अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकला। जिस घर को उसने बड़े चाव से केवल वीडियो में देखा उसमें वह ऐसे प्रसंग पर प्रवेश करेगा इस बात की उसने कभी कल्पना तक ना की थी ? घर में वह तथा उसकी मम्मी दोनों ही थे। दोनों अपने अपने   कमरों में बंद सदमे से उबरने का प्रयास कर रहे थे। मम्मी का गाना व गुनगुनाना थम गया था। दोनों को अपना घर व जीवन निष्प्राण देह की जैसे प्रतीत हो रहे थे जहाँ सब कुछ होते हुए भी कुछ शेष नहीं बचा था। घर के नौकर नौकरानी सब को छुट्टी दे दी थी। मम्मी जो कुछ बना कर सामने रख देती वह अनमने भाव से खा  लेता। इस सप्ताह भर के एकांतवास में वह केवल पप्पा का स्मरण करके जी भर रोते रहा। उसे काफी हल्कापन लग रहा था पर अभी कमरे के बाहर निकल कर बाहर निकलने का जी नहीं कर रहा था। चारों ओर सुई पटक सन्नाटा छाया था। शशांक को लग रहा था जैसे सारी सृष्टि उसके पप्पा के जाने से शोक ग्रस्त है।

      सुबह मम्मी उसके कमरे की साफ सफाई करती दिखाई दी तब उसे पता चला कि सारे नौकर चाकर छुट्टी पर भेज दिए गए हैं। इसी बहाने आज उसकी मम्मी से बातचीत हुई। मम्मी ने कहा "अब तो अमेरिका की तरह यहाँ भी सारा काम हमें स्वयं ही करना होगा। इतने दिनों से घर के बगीचे में पानी भी नहीं दिया। मैं पानी दे कर आती हूँ।"  तभी सहसा शशांक को मम्मी के गठिया का स्मरण हो आया तो उसने मम्मी को ऐसा करने से रोका व  बगीचे में आ गया।

       पप्पा को बागवानी का बड़ा शौक था।  जब से इस बंगले में रहने आए वही इसकी देखभाल करते। मम्मी ने घर के भीतर पौधे लगाने की मनाई कर रखी थी। उनका मानना था कि पौधों में मच्छर पनपते हैं। बगीचे में भी वे नियमित रूप से दवा का छिड़काव करवाती। 

      अप्रैल की चिलचिलाती धूप में अपने पिता के प्यारे बगीचे को पिछले अनेक दिनों से प्यास से तड़पते देखा तो उसमें अपराध भाव सा जगा। अधिकांश पौधों के पत्ते मुरझा चुके थे। गुड़हल के पत्तियों का आकर बहुत घट चुका था पर अब भी उसमें  छोटे सही पर कुछ पुष्प उसे देख कर मुस्कुरा रहे थे। उसे सहसा पप्पा के मुखमंडल का स्मरण हो आया! उन्हें भी तो उसने हर परिस्थिति में मुस्कुराते देखा था। उसे वे फूल उसके पप्पा के तकिया कलाम ' हर समस्या अपना समाधान भी अपने साथ ही लाती है बस तुम्हारे पास उसे देख पाने की दृष्टि होनी चाहिए।' स्मरण कराते प्रतीत हुए। उसे लगा जैसे प्रकृति की अबोली भाषा में उसके पप्पा ही उससे संवाद साध रहे हैं। उसने प्रकृति की  उस अद्भुत भाषा को मन ही मन प्रणाम किया। तभी उसकी दृष्टि  कोने में पानी के नलके से जुड़े सहेजकर रखे पानी के पाईप पर पड़ी। उसे लग रहा था जैसे वह केवल उन पौधों की जड़ों को ही नहीं बल्कि अपने संतप्त अंतर्मन को भी इस शीतल जल से सींच रहा है। वह हर पौधे से मन ही मन क्षमा याचना कर रहा था जिसका उत्तर उसे उनकी मनमोहक मुस्कुराहट से मिल रहा था। सारे बगीचे को सींचने में घंटा भर लगा। इस बीच उसके अंतरंग का काया पलट हो गया। जब उसने अपनी मम्मी के मुरझाई आंखों में उसे देखकर सहसा बढ़ी चमक को देखा तो मुस्कुराए बिना ना रह सका जिसका उत्तर भी उसे मोहक मुस्कान से मिला। इस शांत शब्द हीन भाषा  में सधे संवाद के सामने उसे सारा शब्द ज्ञान तुच्छ लग रहा था। रात को उसने पहली बार अपने ई मेल चेक किए तो पाया कि उसे जल्द से घर से ही काम की बागडोर संभालने के निर्देश कार्यालय से प्राप्त हुए हैं। रात भर अपने कार्यालय का कार्य करके तड़के जब उसके कानों से मम्मी के रियाज़ करने का सुरीला स्वर टकराया तो प्रसन्नता से उसका अंग अंग रोमांचित हो उठा! वह कमरे का द्वार खोल कर बगीचे की ओर के बारजे में आया तो  ठंडी-ठंडी बयार उसके सर के बालों को वैसे ही सहलाने लगी जैसे उसपर अति प्रसन्न होने पर पप्पा सहलाया करते तथा कहते "शाब्बास!!"

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~~ श्याम सुन्दर शर्मा

    

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