माँ की सीख |
नजरंदाज बेटी ना करे,मानकर कि रोजाना का किस्सा हुआ |
बहु बनकर बेटियों को,संभालना होता है एक दिन घर,
उसे सीखना जरूरी है,अच्छा नही लगता घर बिखरा हुआ |
माँ की सीख के मोती को, बेटी ने जितनी शिद्दत से बटोरा,
गमों से होकर महफूज, उसके घर खुशियों का फेरा हुआ |
बेटियों का हुनर और जायका, बेहतरीन होता जाता है,
वो माँ के तजुर्बी हाथों से, जितना होता है तराशा हुआ |
बाधाओं के काँटों के मध्य, होता सहिष्णुता के फूल खिलाना,
रास नही आता परिवार में, चेहरा गुस्से में तमतमाया हुआ |
महज चिंतन को बुनने से, ख्वाब साकार नही हुआ करते ,
पुरा होगा स्वप्न बेटी का, जो अध्ययन से तुफान लाया हुआ |
माँ की सौच को मान पिछड़ेपन निशानी, ना कर मनमानी,
तुम्हे ना सुनना पड़े ताना, कुछ भी नही इसे सिखाया हुआ |
नर्सरी के नवांकुर पादप से, होते है हर बेटी के हालात,
शोभित नही करती उस जमीं कों,जहाँ इसे लगाया हुआ |
सामंजस्यता की खाद और विनम्रता की सिंचाई जरूरी है,
तभी मुर्झाने से पहले बेटी का, वातावरण में ढलना हुआ |
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सीमा लोहिया
झुंझूनू (राजस्थान)