ये आदत रूठ जाती है..........


किसी भी दर पे जाओ तुम, ज़ियारत रूठ जाती है;
ख़ुदा में ना यकीं हो ग़र, इबादत रूठ जाती है!
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चलो अब छोड़ दो गुस्सा, और ये रूठना मनाना;
अना हो ग़र मोहब्बत में, मोहब्बत रूठ जाती है!
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मेरा तुझ पर, तेरा मुझ पर, यकीं बेहद ज़रूरी है;
यकीं जिस रोज़ ना हो तो, अक़ीदत रूठ जाती है!
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मुकम्मल हो ग़ज़ल कैसे, तुम्हारे ज़िक्र के बग़ैर;
तुम्हारा ज़िक्र ना हो ग़र, इबारत रूठ जाती है!
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मेरे बस में नहीं है ‘अक्स’, कि तुझको भुला दूँ मैं;
मैं चाहूँ भी तो साँसों की, ये आदत रूठ जाती है!!



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 Singrauli, Sidhi,India

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