आओ करीब आओ......

नश्तर कितने भी चुभाओ
आओ करीब आओ।।

इस झील से जीवन मे
दिल मेरा नही लगता
लाओ तूफ़ान कोई लाओ
आओ करीब आओ।।

इन उजालों से उकता गया हूं
अपनी जुल्फें जरा बिखराओ
थोड़े अंधेरे जरा बसाओ
आओ करीब आओ।।

भटक गया हूं चलते चलते
मुझे कोई राह दिखाओ
दिखाओ नई राह दिखाओ
आओ करीब आओ।।

सारी दुनियां में घूम आया हूँ
सकूं कहीं नही पाया हूँ
मुझको सीने से लगाओ
आओ करीब आओ।।

प्यार के नाम पे फरेबों की
हर शै को देख आया हूँ
मुझको इंसाफ दिलाओ
आओ करीब आओ।।

क्यूँ मैं दुनियां सा ना हो पाया
लाख चाहा नही बदल पाया
थोड़ा मुझको बदल जाओ
आओ करीब आओ।।

आज महससू फिर यूँ होता है
जीवन व्यर्थ में ही खोता है
नई कुछ उम्मीद जगाओ
आओ करीब आओ।।

अच्छा है कि जुदाई मिली
तुम्हे जाना लगा खुदाई मिली
इल्ज़ाम कितने भी लगाओ
आओ करीब आओ।।

सोचता हूँ इस जुदाई से
मिला क्या हमें रुसवाई से
नश्तर कितने भी चुभाओ
आओ करीब आओ।।
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प्रदीप सुमनाक्षर
Delhi ,India


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