मेरा गाँव....


तेरी बुराइयों को हर अखबार कहता है,
और तू मेरे गाँव को गँवार कहता है !

ऐ शहर मुझे तेरी औकात पता है,
तू चुल्लू भर पानी को वाटर पार्क कहता है !!

थक गया है हर शख्स काम करते करते,
तू इसे अमीरी का बाजार कहता है !

गाँव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,
तेरी सारी फुर्सत तेरा इतवार कहता है !!

मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहा है,
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है !

जिनकी सेवा में बिता देते सारा जीवन,
तू उन माँ-बाप को खुद पर बोझ कहता है !!

वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है !

बड़े बड़े मसले हल करती यहां पंचायतें,
तू अँधी भष्ट दलीलों को दरबार कहता है !!

बैठ जाते हैं अपने पराये साथ बैलगाड़ी में,
पूरा परिवार भी ना बैठ पाये उसे तू कार कहता है !

अब संस्कारों की बात कौन करता है,
साहब हर इंसान अब सिर्फ पैसों की बात करता है !!


माँ बाप अपने बच्चों के लिए अपने सारे सुख कुर्बान कर देते हैं ,
और बच्चे बड़े होकर शहर पैसा कमाने चल देते हैं !

बूढी आँखें थक-थककर अपने बच्चों की राह तकती हैं,
लेकिन पैसे की चकाचौंध इंसान को अँधा कर देती है !!

कहने को शहर अमीर है लेकिन यहाँ सिर्फ पैसे के,
अमीर लोग रहते हैं, दिल का अमीर तो कोई कोई ही मिलता है !


परिवार,रिश्ते नाते अब सब बस एक बंधन बनकर रह गए हैं,
आत्मीयता और प्यार तो उनमें रहा ही नहीं !!

जो माँ बाप अपना खून पसीना एक करके पढ़ाते हैं
उनको बोलते हैं कि आपने हमारे लिए कुछ किया ही नहीं !

इससे तो अपना गाँव अच्छा है कम से कम लोगों के ,
दिल में एक दूसरे के लिए प्यार तो है !!

परेशानियों में एक दूसरे का साथ तो है,
पैसा चाहे कम हो लेकिन संस्कार और दुलार तो है !

जिंदा है आज भी गाँव में देश की संस्कृति,
तू भूल के अपनी सभ्यता खुद को तू शहर कहता है !!

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 डॉक्टर शशांक शर्मा
 Kawardha, india 


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