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उसने नजरें मिली ये जुल्म हों गया
अच्छा खासा था मैं बेशर्म हो गया।।
आंख उठती नही थी कभी भी कंही
उनको देखा तो ये भी चलन खो गया।।
आंख उठने लगी नजरें चलने लगी
एक क्षण में ये यारों गजब हो गया।।
Main Mera dil
देखते देखते उठ के वो चल दिये
और बूत सा खड़ा मैं वही रह गया।।
जिन्दगि में मुझे आज ऐसा लगा
मेरा दिल जैसे मुझ से अलग हो गया।।
रात ऐसी ना थी कल तलक आयी जो
आज नींदों को मेरी ये क्या हो गया।
रात की स्याही मुझको डराने लगी
भोर की रोशनी से दिल जल गया।।
मेरे अन्दर ही है एक समुन्दर उठा
दो किनारों सा मैं मेरा दिल हो गया।।
किसकी अब मैं सुनु अब ये क्या हो गया
मेरा दिल बे वज़ह है कंही खो गया।।
ना चाहूं मगर चल पड़ा हूँ उधर
जिन गलियों में मेरा जहाँ खो गया।।
एक नजर देखने की उन्हें चाहत लगी
देख कर फिर फिर देखूं ये क्या हो गया।।
क्या यही प्यार है क्या यही है वफ़ा
के खुद से ही खुद अब मैं जुदा हो गया।।
अब क्या मैं करूँ कोई मुझको बता
उनका चेहरा ही अब तो खुदा हो गया।।
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प्रदीप सुमनाक्षर
Delhi ,India