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मैं कक्षा चार में पढ़ती थी। हमारे स्कूल में फेट लगा था। बच्चों के द्वारा कुछ स्टॉल लगाए गए थे।कहीं मटर, कहीं छोले, कहीं समोसे कहीं छोटे छोटे खिलौने इत्यादि बिक रहे थे।
मेरे ही क्लास के एक लड़के ने भी एक स्टॉल लगाया था। पानी से भरी बाल्टी की पेंदी में एक चूड़ी पड़ी हुई थी। चवन्नी बाल्टी के अंदर ऐसे डालनी थी कि वो चूड़ी के अंदर जाए, बाहर नही। अगर चवन्नी बाल्टी के अंदर चली जाती थी, तो बदले में एक चॉकलेट मिलती थी।
वो चॉकलेट भी काफी अलग सी थी। उसका आकार गोल था।सुनहरे रंग के रैपर से ढकी हुई थी।और उस पर एक रुपये का सिक्का बना हुआ था ।
चॉकलेट वैसे भी एक luxurious item होता था जो जेबख़र्च के लिये रोज़ मिलने वाली चवन्नी में नही आती थी। सालों में कभी कभार कोई विशेष सुअवसर पर एक चॉकलेट मिलती थी जिसमें हम चार भाई बहनों का हिस्सा लगता था।
मेरा बाल मन उसी चॉकलेट में अटक गया।मुझे लगा ये तो बेहतरीन अवसर है चवन्नी में एक रुपये की चॉकलेट पाई जा सकती है। उस दिन मुझे और मेरी छोटी बहन को ढाई-ढाई रुपये मिले थे मेले के लिये,जिसमें से चार रुपये हम खाने पीने में उड़ा चुके थे।मैं भी अपनी बहन के सामने ख़ुद को शूरवीर साबित करने का मौका गवाना नही चाहती थी।मैंने कहा -" ये तो मेरे बाएं हाथ का खेल है।तुम बस देखती जाओ।"
मैंने चवन्नी निकाली और बाल्टी में डाल दी। गड़प गड़प करती चवन्नी नीचे अपनी यात्रा पर चल निकली। मगर मैं अर्जुन तो थी नही।मछली की आंख पर नही आंखों की काजल रेखा के बाहर तीर जा गिरा।
मेरा हौसला अब भी बरक़रार था।मैंने एक और चवन्नी अपने बटुवे से निकाली। मेरी इकोनॉमिस्ट बहन ने संदेह की दृष्टि से देखा। पर मैंने कहा- "अरे कुछ नही छुटकी , समझो अठन्नी खर्च करके एक रुपये की चॉकलेट मिली।"
पर इस बार भी मेरी चवन्नी चूड़ी का चक्रव्यूह भेद नही पायी। पर मेरे अंदर के वित्त मंत्री को अभी भी बज़ट संभाल लेने की पूरी आशा थी। एक और चवन्नी स्वाहा हुई।हम 75 पैसे के नुकसान पर थे।
अब मेरा मन मायूस हो चला था। मेरी बहन को मेरी कलाकारी की सारी कलई समझ आ गयी थी।उसने मेरी फ्रॉक पकड़ के घसीटते हुये कहा- "चलो दीदी ,हम बेवकूफ बन रहे है। चवन्नी इसमें जाएगी ही नही।" बहन और सहपाठी लड़के के सामने फिसड्डी धनुर्धर साबित होने का प्रेशर मेरे ऊपर क़ायम हो चुका था। मैंने सारे देवताओं को स्मरण किया। हनुमान जी को याद दिलाया - " कौन सो काज कठिन जग माहीं, जो नही होत तात तुम पाहीं।"
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मेरा सहपाठी कोई अपवाद थोड़े ही था जो लड़की के आंसू देखकर न पसीजता।उसके दिल की सारी मोम अंततः पिघल ही गयी।उसने बाल्टी में ही पड़ी एक चवन्नी उठायी और चूड़ी के अंदर डाल दी। और मुस्कुराते हुये एक चॉकलेट मुझे दे दी।मेरा लालची बालमन मना नही कर सका क्योंकि एक रुपये का नुकसान मेरे लिये बहुत बड़ा था। मैंने आंसू पोछे,मुस्कुराकर उसे थैंक यू बोला और बहन का हाथ पकड़ कर वहां से चली गयी।
उस चॉकलेट ने मेरी और उसकी दोस्ती और गहरी कर दी थी।
ये था मेरा अब तक का सबसे प्यारा चॉकलेट डे !
#ChocolateDay
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Twinkle Tomar Singh
Lucknow, Uttar Pradesh
Very beautiful story!!! Your stories are awesome as always
ReplyDeleteThank you so much
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