नक़ल पर नकेल ...


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     आज का दौर पढ़ाई लिखाई और प्रतिस्पर्धा पर ही टिकी है,जो अच्छा पढ़ने लिख़ने में होगा उसी का भविष्य अच्छा समझा जाता है और होता भी यही है! वर्तमान समय में बहुत से विषय और उनसे संबन्धित व्यवसाय भी है ! अपनी राह खुद चुनने कुछ कर दिखाने का मौक़ा हर किसी के पास है और युवा करना भी चाहते है! पर भारत जैसे देश में अभी भी बहुत से जगहों पर ऐसी सुविधा ही नहीं पहुँच पायी है, और जहां है भी तो बिना किसी देख रेख वह भी ना के बराबर ! हां मेरे कहने का मतलब अभी भी सरकार अपने ही तंत्र का सही से पालन नहीं कर पा रही तो वो दूसरों पर हर बात क्यों थोप दे रही है !

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    मैं नक़ल का पक्षधर नहीं हूँ पर इस बेढंग ग़ैराना सरकारी शिक्षा-दिक्षा का खुला विरोध करता हूँ !एक तरफ जंहा ICSE,CBSE के मान्यता वाले विषय (Computer/C/C++/JAVA 10th में ) और अनुशासन देखता हूँ तो तरस आता है स्टेट बोर्ड गांव देहात के छात्रों के साथ जो दोहरा व्यवहार हो रहा है ! हर तरफ से बहुत अंतर है,जबकि सरकारी विद्यालयों में अधिक सुविधाएं होनी चाहिए अच्छे अध्यापक होने चाहिए ! पूरा देश बिखरा हुआ है अभी आरक्षण की लापरवाही में और कितने पिसेंगे इस संवैधानिक तिकड़म में,जिनका अकारण इनसे सामना हो रहा है!अगर गलतियां शिक्षकों ,विद्यालयों की हो तो इसका हर्जाना विद्यार्थी,अभिभावक क्यों भुगते!

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   हाल ही में अचानक सरकार द्वारा नक़ल पर प्रतिबन्ध लगाने का फैसला बेहद सराहनीय हुआ है,पर यह कितना उचित है इस पर भी सोचना चाहिए ! यह एक तरह से एक तरफ़ा निर्णय ही हुआ! क्या सरकार अपना कमी भी स्वीकारेगा ! अगर इस निर्णय से बच्चे अनुत्तीर्ण हुए तो उनके दिए हुए रकम वापस किये जायेगे ! क्योकि सदियों से चली आ रही इस नकल परम्परा का अचानक से ऐसा सुझाव बहुत गंभीर स्थिति कर देने वाला है ! 68 लाख युवाओ का 1 साल का किया धरा किसके लापरवाही से बिगड़ेगा यह भी समझना होगा !सारा ठीकरा हम पर ही मढ़ा जाता रहेगा,अगर आज के लिए हम जागरूक नहीं हुए तो हम आम जनता का इसी तरह शोषण होता रहेगा!



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   यहाँ उन युवाओं का ही नहीं उनके मजदूर माँ-बाप का भी नुकसान ही है जो किसी तरह फीस के पैसे तो इकट्ठे करके जमा करा दिए पर आगे की पढ़ाई लिखाई में किताबो के पैसे ना होने से विद्यालयों के भरोसे रह गए ! पहले से ही चल रहे शिक्षा-दिक्षा में बिना किसी योजना,सुधार और आये दिन कमियों को भी देखना जरुरी था ! सिर्फ विद्यार्थियों की ही कमी क्यों दिखाई दिया उन शिक्षकों को भी टोकना था जो गैरज़िम्मेदारो की तरह अपने काम का अनदेखा करते है! जिन शिक्षकों के पढ़ाये विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हो रहे हो उनका भी साल भर का तनख्वाह काट लेना चाहिए ! उस प्रधानाध्यापक का भी कुछ नियम के तहत दंड निर्धारित हो जिसके विद्यालयों से विद्यार्थी अनुत्तीर्ण होते हो ! कौन जवाबदेह है इन सभी कारणों का !


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    घर के आंगन में लगे एक पेड़ जरा टेढ़ा होने लगे तो लोग उसे सहारा लगाकर सीधा करने की कोशिश तो करते है! वही व्यवहार इनके साथ भी हो सकता है! 9th 10th में तो छात्र,छात्राओं का उम्र ही ऐसा होता है की पूरा जोश से भरा होता है ! जो भी उन्हें जैसा भी सिखाएगा बताएगा वो वैसा ही करने को आतुर हो जाते है ! इस उम्र में तो बस यही लगता है जो हम कर रहे है वही सबसे अच्छा है! सबसे समझदार हम ही है !इसी उम्र में ये अपने घर के सयाने हो जाते है ,जिम्मेदारियां उठाने लगते है ! बढ़चढ़कर समाज के कार्यो में हिस्सा लेते है! जीवन के हर सुख-दुःख के पड़ाव को समझने लगते है ! अपने बात व्यवहार से हर किसी को अपनांने की कोशिश करते है! इनके वर्तमान और भविष्य को लेकर चिंतित होना लाजमी है पर इस तरह मजाक बनाना बहुत ही निंदनीय है!

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Arvind Tiwari
Allahabad ,India 

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