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दिल मे मेरे जख्मों के श्मशान छोड़ गया !! |
दिल मे मेरे जख्मों के श्मशान छोड़ गया !!
दरख़्त चिल्लाते रहे बचाने को अपनी आरजू !
एक तूफ़ां पेड़ के सारे पत्ते टहनी तोड़ गया !!
हम जमाने मे लड़ते रहे मंदिर मस्जिद !
वक्त हमारे हाथ के हर ख्वाब तोड़ गया !!
तिरेंगे में लिपट कर आ रहे है माँ बहनों के अरमान !
सियासत कितने घरों का जमीं आसमान फोड़ गया !!
जमाने को दिखाने को है उनकी आंखों में आंसू !
मुहँ फेरते ही वो आंखों पे काला चश्मा ओढ़ गया !
वतन परस्तों को वतन से बढ़ कर क्या !
नेता फिर कैसे धन से रिश्ता जोड़ गया !!
जिस देश की बेटी सड़कों पे रोज होती हो बेआबरू !
उस देश के कर्णधार कैसे अपने दरवाजे मोड़ गया !!
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@प्रदीप सुमनाक्षर
Delhi, India
इस सम्मान के लिए बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteThank you so much
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