सियासत कितने घरों का जमीं आसमान फोड़ गया। |
वो तूफ़ां जो मेरे करीब से होकर गुजर गया।
दिल मे मेरे जख्मों के श्मशान छोड़ गया।।
दरख़्त चिल्लाते रहे बचाने को अपनी आरजू।
एक तूफ़ां पेड़ के सारे पत्ते टहनी तोड़ गया।।
हम जमाने मे लड़ते रहे मंदिर मस्जिद।
वक्त हमारे हाथ के हर ख्वाब तोड़ गया।।
तिरेंगे में लिपट कर आ रहे है माँ बहनों के अरमान।
सियासत कितने घरों का जमीं आसमान फोड़ गया।।
जमाने को दिखाने को है उनकी आंखों में आंसू।
मुहँ फेरते ही वो आंखों पे काला चश्मा ओढ़ गया ।।
वतन परस्तों को वतन से बढ़ कर क्या।
नेता फिर कैसे धन से रिश्ता जोड़ गया।।
जिस देश की बेटी सड़कों पे रोज होती हो बेआबरू
उस देश के कर्णधार कैसे अपने दरवाजे मोड़ गया।।
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Delhi, India