जब नफरत इतनी है क्यूँ गमे जुदाई उठती है वो


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सुना है बड़े खुश है वो आजकल मेरे बैग़ैर !
फिर क्यूँ मुझे उनके रोने की आवाज़ें अक्सर आती है !!

अब बड़े चांदनी में नहा कर आते है वो महफ़िलो में !
फिर अंधेरो के दीप जलते है क्यूँ हरपल उनके घर में !!

बड़े करते है वो दावे उन्होंने भुला दिया मुझे !
जो मुझे देख राहों में राह बदल जाते है यकायक !!

सुना है बड़ा ठहाके लगते है अब वो महफिलों में !
जिनके दर पे तन्हाई के दरबान दिनोंरातखड़े रहते है !!

यूँ तो मिल ही जाते है हम किसी ना किसी महफ़िल में !
हम जिधर हो उधर गलती से भी वो नजर घुमाते नही है !!

अनजान इतनी है वो अब मेरे नाम से !
गलती से कोई कह भी दे गौर जरा भी फरमाते नही है !!

सुना है तन्हाइयों में भी किसी से बातें करती है वो !
कभी हंसती कभी रोती कभी सर पटकती है वो !!

उसकी दीवानगी का आलम मैं अक्सर देख कर सोचूँ !
जब नफरत इतनी है क्यूँ गमे जुदाई उठती है वो !!

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Pradeep Sumnakshar
Delhi, India

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