**मेरा भारत पिसा जा रहा**
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मेरा भारत पिसा जा रहा |
खुद भी तो मैला हुआ अंदर ही अंदर।
तिरंगे पर जो छिड़कते है जात धर्म लहू के छीटें,
वो सफेद पोश इतने पाक साफ है फिर दिखें।।
कल तलक जो गुंडे चोर लुटेरे थे मुल्क के,
आज जमाने मे वो सब इज्ज़तदार हो गए।
चंद रोज पहले जो मालिक थे बस अपनी जान के,
आज मालिक है वो अरबों की संपत्ति माल के।।
देश जल रहा है लुट रहा है मिट रहा है आग में,
पर मेरे यार मस्ती में है ईद में कहीं फाग में।
सुना है बड़ी मोटी मोटी है संसद की दीवारें,
फिर कैसे गरीब मजबूर की चीख उनको पुकारे।।
जी करता है एक जन्नत का बोर्ड संसद पे लगा आऊँ,
देश के सब नेक ईमानदार लोग वहीं ये सब को बतलाऊँ।
और ये भी देखना था हमे अभी इस जहान में,
शासन की नीतियों की भरो हामी या देशद्रोही कहलाओ।।
सोचता हूँ कल कैसा होगा मेरे लोगों का जीवन,
कुत्तों की तरह रात दिन बेवजह लड़े जा रहे।
जात धर्म भाषा राज्य चुनावों के वादे है,
और इन सारे वादों में मेरा भारत पिसा जा रहा।।
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प्रदीप सुमनाक्षर
दिल्ली , इंडिया
बहुत बहुत शुक्रिया ।। मंगल ज्योति।।
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