" बेनाम हो तुम "
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बेनाम हो तुम |
न कोई हलचल है !
एक एहसास बन लिपटे हो,
न कोई हासिल है !!
दूर नहीं हो मुझसे मगर फिर भी,
जाने क्युँ कुछ खाली सा है !
मेरी रूह से सिमटा तेरा एहसास,
आज भी खूशबु की तरह मुझे महका जाता है !!
बेनाम सा हमारा रिस्ता आज भी,
ढुढ़ता है तुम्हे !
हाँ यही कही हो तुम आज भी,
उस चाँद मे !!
जिसकी छिटकती चाँदनी मे,
अक्सर मेरा अक्स देखा करते थे तुम !
सब बदल गया मगर बदली नहीं मै,
लिपटी है तेरी रूह !!
आज भी तन से मेरी,
एक मीठा सा एहसास हो तुम
हाँ " बेनाम हो तुम "।
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स्निग्धा रूद्रा
हथुआ , इंडिया