Sanjaya Shepherd |
''यह उनकी मौत के तकरीबन तीन महीने बाद कि बात है''
उसके बाद वह महीनों तक मुझे नहीं दिखीं। ना ही बिस्तर के आसपास और ना ही सपने में ही।
एक रात जब सब सो रहे थे। मुझे दीवाल पर बिछी एक बूढ़ी सी परछाई दिखी। मुझे अपने आसपास किसी के होने का आभाष हुआ। मुझे लगा कि दादी हैं। परन्तु वह नहीं थी।
"मैंने कहा ना कि जाने वाले कभी नहीं लौटते"
मेरे लिए मेरी दादी इसलिए खास रहीं क्योंकि उन्होंने कच्ची गिली मिट्टी जैसे लुढ़कती मेरी नन्ही सी देह को आकार दिया था। उन्होंने मुझ मामूली से बच्चे में इंसान होने का मंत्र फूंका था। वह अक्सर कहा करती थी कि तुम मामूली चीजों के देवता हो। अपने से सभी छोटो जीवों को प्यार करना सीखो।
शायद इसीलिए जब वह चली गईं तो सबसे पहले अपनी समझ के मुताबिक इस दुनिया के सबसे छोटे जीव यानि कि चींटियों से मैंने बातचीत करना सीखा। उनकी दुनिया को अपने तरह से ईजाद करने की कई सफल- असफल कोशिशें की और उनसे प्यार कर बैठा।
आलम यह कि गर्मी के मौसम में जब घर के सभी सदस्य सो रहे होते थे तो मेरा ज्यादातर समय झुंड के झुंड मौजूद उन चींटियों के साथ बीतता जो मेरे आसपास के परिवेश में मौजूद थी। मैं अपनी दादी के कहे अनुसार उनके रास्तों पर हर रोज़ चुटकी भर आटा डालता। पेट भर जाने के बाद बदले में वह सोने की बजाय मुझसे बारिश, तूफान और बादलों की बातें किया करती थीं।
"सच कहूं तो बहुत ही ज़हीन होती हैं चींटियां।"
मैंने उन्हें कभी भी नींद और नशे में नहीं देखा। ना ही कभी हारा और उदास पाया। उन चींटियों ने मुझे सिखाया कि बादलों को कैसे पढ़ा जा सकता है ? उन्होंने मुझे सिखाया कि हवाएं अपना असर कैसे दिखाती हैं ? और किस स्थिती में हवा का सामान्य सा रुख तूफान बन जाता है।
मैंने अपने आप और चींटियों में बस एक ही फ़र्क पाया। हमें बारिश पसंद रही और वे बारिश से डरती थी। जब कभी बादल गरजता वह अपना लाव-लश्कर उठाकर ना जाने कहां चल देती। उन्होंने मुझे अपने घर का अंतिम पता कभी नहीं बताया।
शायद वह बताना ही नहीं चाहती थी।
शायद वह तभी तक मेरे जीवन में रहना चाहती थी जब तक कि दादी थी। दादी के जाने के बाद वह चींटियां एक एक करके धीरे-धीरे मेरे जीवन से सचमुच गायब होती गईं। मुझे कई बार उनकी याद आई पर उन्होंने मुझे कभी नहीं बताया कि वह कहां चली गईं हैं।
अपने जीवन से उन्हें जाता देख मुझे उतना ही दुःख हुआ हुआ जितना कि दादी के जाने से हुआ था। मैंने अपने लिए एक एकांत तलाशा और इस दुनिया से गायब होते जीवों के लिए खूब रोया। दादी कहती थी कि रोने के बाद दुनिया पारदर्शी दिखाई देने लगती है और आगे के रास्ते स्पष्ट हो जाते हैं। सही मायने में उस दिन मुझे इस बात का स्पष्ट पता चल गया कि अब मैं मामूली चीजों का देवता नहीं रहा।
उस दिन मैंने पहली बार अपने हाथों से बोए गए गेहूं के नन्हें बीजों को खेतों में मरते देखा, मैंने देखा कि किस तरह से परिन्दों की फड़फड़ाहट नीले आसमान को लाल कर रही है, मैंने देखा कि मछलियां का जीवन समुन्द्र से कैसे अंजुरियों में सिमट रहा है। कितनी अजीब और अनोखी बात है कि यह दुनिया तेजी से मर रही है और इंसान चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा है।
उस दिन भी दादी बहुत याद आईं। मैंने उनसे धरती पर दुबारा लौट आने की बात की पर उन्होंने मेरी बात को अनसुना कर दिया।
एक दिन जब गहरी नींद में था। सपने में देखा कि गर्मी की पहली बारिश होने को है। चींटियों को इस बात का पहले से आभाष हो आया है। मेरे बिस्तर के चारों तरफ उन्होंने अपना लाव- लश्कर डाल दिया है। ऐसा लग रहा है कि दादी हमेशा की तरह चुटकी भर आंटे में मोहल्ले भर की चींटियों को नौत आई हैं।
और मैं उनके बीच खुदको पाकर बेहद खुश हूं।
लेकिन इसी मध्य सपना टूट जाता है।
एक एक करके चीजें बिखरने लगती हैं। मुझे याद आता है कि दादी तो इस दुनिया में हैं ही नहीं। वह बहुत दूर चली गईं हैं। इतनी दूर कि हाथ बढ़ाने के बावजूद भी उन्हें छुआ नहीं जा सकता।
यह सब सोचकर मैं उदास हो गया।
कुछ दिन बाद मुझे अहसास हुआ कि दादी मरने के बाद चींटी बन गई होगी या फिर कोई आसमान में उड़ने वाला परिन्दा या फिर पानी में तैरने वाली कोई रंगीन मछली। उन्हें तितलियों और जुगनुओं का जीवन भी बहुत ही प्रिय था। मेरा एक बार फिर से इन सभी अपने से छोटे प्राणियों से एक लंबा, और फिर कभी नहीं खत्म होने वाला संवाद करने को जी चाहता है।
मेरी दिनचर्या बदलने लगती है।
मैं दिन भर तितलियों के पीछे भागता हूं, शाम तालाब की मछलियों से बातें करके गुजरता हूं, रात में जुगनुओं का पीछा करता रहता हूं। मुझे लगता है कि मैं एक बार फिर से अपनी दादी के जीवन में लौट रहा हूं। उनसे बात करने की एक असफल कोशिश कर रहा हूं। लेकिन वह अब मुझसे बात नहीं करना चाहती, उन्होंने अब अपनी एक अलग दुनिया बना ली है।
फिर भी मैं वर्षों पीछे छूट चुकी स्मृतियों के ट्रैक पर बिना थके अनवरत भागता जा रहा हूं। मैं हांफ रहा हूं, मेरा गला रुध रहा है, मैं गिरने को हूं। लेकिन किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता, जो जा चुका है उसको तो बिल्कुल भी नहीं।
दादी की उदास पीठ धीरे-धीरे मेरी आंखों से ओझल होने के क्रम में गायब हो जाती है।
मैं नींद की अधखुली खिड़की से बाहर की तरफ देखते हुए अपने बिस्तर पर किसी के होने और देह पर किसी के मामूली स्पर्श टटोलने की कोशिश करता हूं। ऐसा लगता है कि खिड़की के बाहर की पूरी दुनिया ही खत्म हो गई है। दादी को गए 21 साल हो गए।
मैं ना चाहते हुए भी यह सोच रहा हूं कि किसी के चले जाने से कहां कुछ मरता है। मेरी दादी मुझमें अब भी कतरा-कतरा जिन्दा हैं। उन्हें मैं अब दुनिया की हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज में ढूंढ लेता हूं। पिछले महीने मैंने उन्हें एक शान्त नदी में तैरती नाव पर देखा था और उससे पिछले महिने उसी नाव पर चढ़ते हुए।
"सफर ख़त्म हो चुका है, पर उतरने का इंतजार अभी भी बहुत लंबा है।" शायद वह किसी बहुत बड़े सफ़र पर हैं।
"मैंने कहा ना कि जाने वाले कभी नहीं लौटते"
हम सब एक नदी के मुहाने पर खड़े कभी नहीं लौटने वाले किसी ना किसी इंसान की प्रतीक्षा में हैं।
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Always the Road
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