आजादी कुछ अधूरी है

आजादी कुछ अधूरी है-1
वो आयाम बड़े थे प्रेम के
दिल मातृभूमि से लगाया था,
आजादी की चेतना को 
जन-जन तक पहुंचाया था !
असंख्य सपूतों ने प्राणाहुति देकर,
मान देश का बचाया था !!
तब जाकर ये जश्न-ए-आजादी,
भाग्य में भारत के आया था !

बलिदानों का दौर तो 
आज भी बदस्तूर जारी है,
सरहद पर खड़ा हर एक सिपाही
स्वयं हिम-आलय सा प्रहरी है !
गोली खाकर सीने पर भी
तिरंगा ऊंचा लहलहाये रखता है,
खुद के रक्त से सींचकर 
आजादी का पुष्प खिलाये रखता है !!

पर क्या इन बलिदानों के संग 
न्याय हम कर पाए हैं ?
हमने तो तिरंगे को भी 
तीन रंगों में बांट डाला है !
केसरिया हिन्दू , हरा इस्लामी
और सफेद ?
सफेद शहीद के घर छाया है ,
मातृभूमि का सीना भी सब देख 
फट-फट आता है !


आजादी कुछ अधूरी है-2
चिथडों में लिपटा कोई जन‌ जब
सूखी रोटी को तड़प जाता है,
कर्ज में डूबा जब घर किसान‌ का
प्राण‌ तिल-तिल कर छोड़ जाता है !!
आजादी का हर एक त्याग ,उस पल
शर्मसार हो जाता है !

सियासत की‌ तो बात क्या‌ करोगे,
चकाचौंध में कहां कुछ दिखता है !!
वहां हाला है , हरियाली ‌है
हमको बांट कर ही तो उनकी
कुर्सी कब्जे में आली है !

हमको ही इन झुकते कंधों‌ को
थोड़ा बल अब देना होगा,
बलिदानों को लज्जित न होने दें
साथ मिलकर हर प्रपंच से बचना होगा !
तभी वो आज़ाद ,वो‌ भगत सिंह
‌और गांधी वो जान‌ जाएंगे,
आजाद बन गया आज वो भारत 
जिसे विदेशी शासन से मुक्ति दिलाये ‌थे !!

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       निहारिका शर्मा 
    मोरादाबाद , इंडिया 


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