ढाबे पर काम करने वाली भारतीय कबड्डी टीम की डिफेंडर बनी

 
कविता ठाकुर
 भारत प्रतिभाओ और अनोखे कारनामे करने वालो से हमेशा प्रेरित रहा हैं ! यहाँ कुछ ना कुछ हमेशा अजब-गजब प्रोत्साहन देने वाले खबर आते रहते हैं ! आज हम ऐसे एक महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने बहुत संघर्ष करके भारतीय कबड्डी टीम में अपनी जगह बनाई हैं !

    हिमाचल की हाड कपा देने वाली ठण्ड में ना शरीर पर गर्म कपड़े होते थे ना रात में सोने के लिए सही बिस्तर और कम्बल ! इन तमाम दुविधाओं को से संघर्ष करके हालातो से लड़ लड़ाकर कविता ने भारतीय कबड्डी टीम में नुमाइंदगी की !भारतीय कबड्डी टीम की डिफेंडर बानी कविता ठाकुर !

    मनाली की रहने वाली कविता का अधिकतर जीवन एक ढाबे में ही गुजरा ! माँ चाय बनाने और खाने-पीने की चीजे तैयार करती हैं ! गरीबी से जूझ रहे इस परिवार में खेलने कूदने की उम्र में कविता का सारा बचपन बर्तन धोने और जूठन साफ़ करने में गुजर गया !

   2014 एशियाड ने कविता और उनके पूरे परिवार की किस्मत बदल दी ! गोल्ड मैडल जीतने वाली महिला कबड्डी टीम में शामिल कविता पर सरकार का ध्यान गया ! कविता ने 2007 में कबड्डी खेलना शुरू किया था ! वह बताती हैं कि यह सबसे सस्ता खेल था इसलिए खेलने लगी !

    छोटे छोटे प्रयासों और प्रतिभा को निखारते रही ! इन्ही के बदौलत कविता को 2009 में धर्मशाला स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण में मौक़ा मिला ! कविता की मां कृष्णा देवी का कहना है कि ये मेरी बेटी की कड़ी मेहनत का ही फल है कि हमें रहने के लिए छत उपलब्ध हो पाई है। कुछ वर्ष पहले तक हम ये सोच भी नहीं सकते थे कि ढ़ाबे के अलावा हमारा परिवार कहीं और रह पाएगा।

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        मंगलज्योति 


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