कितना मुश्किल हैं अपना दिल रखना |
अपना ही दिल दुखा रहे हैं हम !
हम जिसे भूल ही नहीं सकते,
फिर उसे क्यूं भुला रहे हैं हम !!
वो जो आए हैं हम से मिलने को,
उनसे कहिए के आ रहे हैं हम !
अभी रूख़सत नहीं हुआ है वो,
हश्र अभी से उठा रहे हैं हम !!
हिज्र में कुछ नहीं गंवाने को,
कुछ तो है जो गंवा रहे हैं हम !
कुछ दिनों से ये लग रहा है हमें,
अपने नज़दीक आ रहे हैं हम !!
बे सबब तो नहीं ये बे चैनी,
दिल में कुछ तो छुपा रहे हैं हम !
जशने तन्हाई चाहता हैं दिल,
सो ये महफ़िल सजा रहे हैं हम !!
आपने ज़ख़्म देके देख लिया,
देखिए मुस्करा रहे हैं हम !
कितना मुश्किल हैं अपना दिल रखना,
कितनी ज़हमत उठा रहे हैं हम !!
ख़ुद को यूं भी अज़ीयतें दी हैं,
बे सबब भी ख़फ़ा रहे हैं हम !!
हश्र ----- क़यामत, प्रलय ,जशने तन्हाई ----- तन्हाई का जश्न,अज़ीयत ------ तकलीफ़
*********************जावेद अकरम
लखनऊ . उत्तर-प्रदेश
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