श्री कृष्णा और जन्माष्टमी पूजन

भगवान् श्री कृष्ण-1
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता हैं! इसी तिथि को रात बारह बजे मथुरा के राजा कंश की जेल में वासुदेव जी की पत्नी देवकी के गर्भ में भगवान् श्री कृष्ण का जन्म हुआ था! इसी तिथि को रोहिणी नक्षत्र का विशेष माहात्म्य हैं!

इस दिन देश के समस्त मंदिरो में झांकिया सजाई जाती हैं! भगवान् कृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजाया जाता हैं!स्त्री-पुरुष रात के बारह बजे तक व्रत रखते हैं! बारह बजे शंख तथा घंटो की आवाज से श्री कृष्ण के जन्म की खबर चारो दिशाओं में गूंज उठती हैं!

भगवान् श्री कृष्ण की आरती उतारी जाती हैं और प्रसाद वितरण किया जाता हैं! तब प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोला जाता हैं!

भगवान् श्री कृष्ण-2
द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों के अत्याचार बढ़ने लगे ! पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी व्यवस्था सुनाने के लिए तथा अपने उद्धार के ब्रह्माजी के पास गयी! ब्रह्मा जी सभी देवताओं और पृथ्वी को साथ लेकर विष्णु के पास क्षीर सागर में ले गये! उस समय भगवान् की निंद्रा भंग हो गयी! भगवान् ने ब्रह्मा एवं सब देवताओं को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली-भगवान्! मैं पापों के बोझ से दबी जा रही हूँ! मेरा उद्धार कीजिये! यह सुनकर विष्णु बोले-मैं ब्रज मंडल में वासुदेव देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा! तुम सब देवतागण,ब्रज भूमि में जाकर मैं अपना शरीर धारण करो! इतना कहकर भगवान् अंतरध्यान हो गये!

इसके पश्चात सब देवता ब्रज मंडल में जाकर यदकुल में नन्द-यशोदा तथा गोप-गोपियों के रूप में पैदा हुए!


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मंगलज्योति 

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