राजा भगवान श्री राम के चरित्र का विस्तार |
यह चित्र राम के चरित्र का ऐसा यथार्थ उदाहरण प्रस्तुत करता है कि इसे सचित्र इतिहास ग्रंथ माना जाता है, इसकी प्रमाणिकता इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि प्राचीन कालीन चित्र वैदिक साहित्य पर आधारित है , महर्षि बाल्मीकि श्री राम और उनके पिता राजा दशरथ के समकालीन थे ! सीता के द्वितीय बनवास के दौरान जब वह बाल्मीकि के आश्रम में रही थी तभी संभवता रामायण की रचना भी हुई होगी, जिससे घटनाओं और चिरित्रो का साक्ष्य सीता को मिला होगा, इस आधार पर रामायण की कविमय वर्णन शैली वाल्मीकि की अपनी है ,
इनके द्वारा रचित रामायण का सचित्रण चित्रकारो ने अपनी तूलिका द्वारा उकेरा है। प्रागैतिहासिक काल के समाप्त होते ही धातु युग के साथ वैदिक काल का उदय हुआ, दक्षिण भारत में पाषाण काल के पश्चात लौह युग का आरम्भ हुआ, परन्तु भारत में ताम्र और सिंधु के कांस्य युग के पश्चात ही संपूर्ण भारत ने लौह युग आया।
यद्यपि दक्षिण भारत में बसी कांस्य की बनी राम से संबंधित सामग्री प्रात हुई है,
मध्य प्रदेश के कई स्थानों पर तांबे के बनी तांबे के बने भगवान श्रीराम से संबंधित मूर्तियां प्राप्त हुई है ! जो लगभग 2000 वर्ष ईसा पूर्व की है,
इसी प्रकार उत्तर भारत में कानपुर, फतेहपुर, मैनपुरी तथा मथुरा जिलों में तांबे के बने श्री राम के चित्रांकन प्राप्त हुए हैं
लगभग 1000 ईसा पूर्व के मध्य संपूर्ण भारत में चित्रकला की प्रगति का ज्ञान साहित्य रचना जैसे वेदो महाभारत, रामायण या पुराणों में प्राप्त घटनाओं का चित्रो के माध्यम से प्रसंग की विवेचना किया जा रहा है ।
कला में श्रीराम की उपस्थिति तेजस्वी है जो चित्रकला को एक आयाम प्रस्तुत करता है, चित्रकला में श्रीराम के चरित्र को साधारण मानव के रूप में चित्रित करके उनके चरित्र को अत्यंत उदार और लोकप्रिय ढंग से सृजित करके अब प्रस्तुत किया जा रहा है !
श्री राम के जीवन की प्रस्तुति हमें विभिन्न चित्र शैलियों में प्राप्त हो रही हैं, इससे हम यही अनुमान लगाते हैं कि भगवान श्री राम का चित्रण चित्रकला में सदैव ही चित्रित होता रहा हैं और होता रहेगा ।
********************
चन्द्र प्रकाश चौधरी
चित्रकार एवं लेखक
बस्ती, उ०प्र०
जय श्री राम
ReplyDelete