हास्टल रैगिंग और मै

हास्टल रैगिंग और मै-1
मैने 1959-60 मे काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बी. काम. द्वितीय श्रेणी से पास किया।अब आगे की पढाई करनी थी।उन दिनों प्रयाग विश्वविद्यालय प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये और अन्य बहुत से विषयों की शिक्षा के लिये बहुत ही मशहूर था, यहाँ तक कि उसकी तुलना इंग्लैंड के आक्सफोर्ड यूनिवर्सीटी से की जाती थी।मैने भी निश्चय किया कि वहीं दाखिला लेना ठीक रहेगा।मेरा एक क्लासफेलो राजन चौरसिया भी वहीँ पर दाखिला लेने के लिये तैयार हो गया।उसके घर वाले पान मसाले का व्यापार करते थे।उनकी दूकान बनारस के पानदरीबा मोहल्ले मे थी।पानदरीबा में पान मसाले या पान से संबंधित चीजों की ही दूकानें थीं।बनारस का पान अपने स्वाद मे अपनी सानी नहीं रखता।तभी तो एक फिल्म में अमिताभ बच्चन ने यह गाना गाया है:- "खइके पान बनारस वाला----'।

हम दोनों जुलाई के प्रथम सप्ताह में इलाहाबाद के लिये रवाना हो गये।उस समय एडमिशन में उतनी उठा-पटक नहीं थी।फिर हमलोग द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण थे और वह भी अच्छे नंबरों से।अतः एडमिशनआसानी से हो गया।कोई दिक्कत नही हुई।फीस भी तत्काल जमा हो गई।अब हास्टल की व्यवस्था करनी थी।मुझे पहली नजर में ही सर सुंदर लाल हास्टल भा गया था।यह मेरा पहला लव ऐट फर्स्ट साइट था।यह विश्वविद्यालय से सबसे नजदीकी हास्टल था।विश्वविद्या लय गेट केवल 200-300 कदम दूर था। हास्टल के बाउंड्री के अंदर ही हरा-भरा लान था।हम लोग हास्टल के कार्यालय मे गये और हास्टल में भी एडमिशन मिल गया।फीस भी जमा हो गया।मुझे 64 नंबर का कमरा एलाट कर दिया गया।राजन चौरसिया को भी किसी दूसरे कमरे मे जगह मिल गई।हमलोगों ने अपने-अपने कमरों मे ताला बंद किया और वापस बनारस अपना सामान लाने चल दिये।तीसरे दिन हमलोग वापस अपने हास्टल में पहुंच गये।

अब हमने आसपास का मौका मुआयना करना शुरू कर दिया।बगल में बायीं तरफ जी.एन.झा होस्टल था।हम लोगों के पीछे की तरफ पी.सी.बनर्जी होस्टल था।सामने आगे जाके हालैंड हाल होस्टल था जिसमे विदेशी क्षात्र ही प्रवेश पाते थे।उसके आगे डायमंड जुबली हास्टल था।और भी हास्टल थे जैसे हिंदू होस्टल व मुस्लिम होस्टल आदि।पास में ही कटरा मोहल्ला है।अच्छा खासा बाजार है।यूनिवर्सीटी रोड भी है जहां पुस्तकों व स्टेशनरी की दुकानें हैं व रेस्टोरेंट आदि भी।

उन दिनों हास्टल का मासिक किराया 6 रूपये 25 पैसे था।यूनिवर्सीटी की फीस भी उतनी ही थी।मेस का चार्ज तेइस रूपये मासिक था।रविवार के दिन स्पेशल खाना होता था।स्पेशल का मतलब यह था कि सब कुछ वही होता था।बस अलग से खीर या गुलाब जामुन मिल जाता था।

अब आगे असल विषय पर आता हूं।रैगिंग का नाम मैने सुना तो था लेकिन इसका कोई अनुभव न था क्योंकि बनारस मे तो मै शहर में रहता था।हां आशंकित जरूर था।कैसे सुहागरात मे दुल्हन आशंकित रहती है और दुल्हा भी।दुल्हन ज्यादा आशंकित होती है क्योंकि वह अपने मां-बाप को छोड़ के आती है और दुल्हा तो अपने घर मे ही रहता है।

दिन में तो कोई बात न थी पर जब शाम हुई और अंधेरा होने लगा तो घबराहट सी होने लगी।लेकिन मैने मन में सोचा कि जो होगा सो देखा जायेगा।आखिर बहुतेरे फ्रेशर्स भी तो थे।फ्रेशर नवागंतुक छात्र को कहा जाता था और सीनियर पुराने छात्रों को।जब रात को 9 बज गये और सबका खाने-पीने का काम समाप्त हो गया तो दो लड़के मुझे बुलाने के लिये आ पहुंचे।वे भी फ्रेशर ही थे।वे बोले कि मुझे 76 नंबर मे बुलाया गया है, इंटरोडक्सन (परिचय) के लिये।मजबूरी थी।हास्टल मे रहना था तो सीनियर की आज्ञा का पालन करना ही था।

मै 76 नंबर में पहुंच गया।उसमे पहले से ही दो फ्रेशर मौजूद थे।मेरे अंदर पहुंचते ही उन दो फ्रेशर में से एक को वापस भेज दिया गया।पहले वाला फ्रेशर सीधे खडा था।मै भी उसकी बगल में जाकर खडा हो गया।उन 3-4 सीनियर्स में से एक मेरी ओर मुखातिब होते हुये डपट कर बोला:- "फर्सी सलाम करो।"
"मुझे नही मालूम फर्सी सलाम कैसे करते हैं?" मैने जवाब दिया।

सीनियर मे से दूसरे ने मेरे बगल वाले फ्रेशर से कहा:- "'तुम 5 बार फर्सी सलाम करके इन्हें बतलाओ की फर्सी सलाम कैसे किया जाता है?"'

वह फ्रेशर जिसका नाम उमानाथ था सामने की तरफ झुकते हुये अपने दाहिने हाथ को उपर नीचे करते हुये बोला:- "हजूर को गुलाम का सलाम पहुंचे।"

ऐसा सलाम उसने 5 बार किया।अब फिर वो सीनियर मुझसे बोला:-"अब तो तुम्हें समझ में आ ही गया होगा कि फर्सी सलाम कैसे किया जाता है?" यह सलाम राजाओं,नवाबों, जागीरदारों और जमींदारों को उनकी जनता, दरबारी या खिदमतगार किया करते थे और आजकल हमलोग ही तुम लोगों के नवाब राजा और गुरू सब कुछ है।"

मैने केवल एक बार ही फर्सी सलाम किया और मुझे उसी पर रोक दिया गया।दूसरे सज्जन से बीच-बीच में कई बार फर्सी सलाम कराया गया।उनको मुर्गा भी बनवाया गया।यह भी हिदायत दी गई कि कमरे से जब बाहर निकलें तो गमछा, तौलिया या बनियान पहन कर न निकलें वरना कड़ी सजा दी जायेगी।हास्टल से बाहर निकलें तो बूट पहन के निकलें ।चप्पल पहनकर न निकलें।सीनियर कहीं भी दिखाई दें तो उनका अभिवादन करें।

इसके बाद उमानाथ की उस दिन छुट्टी कर दी गई।उमानाथ ग्रैजुएशन करने आया था और मै पोस्टग्रेजूयेशन करने आया था।इस वजह से भी उसकी आज जल्दी छुट्टी कर दी गई क्योंकि एक पोस्टग्रेजूएट के छात्र के साथ ग्रेजुएशन के छात्र का रैगिंग होना उचित न था।इसका कारण यह भी था कि वह बहुत पहले से रैगिंग क्लास में जूझ रहा था। अब मुझसे तरह-तरह के प्रश्न पूछे जाने लगे।फिर मुझसे पूछा गया कि मुझे गाना गाने आता है कि नहीं?

हास्टल रैगिंग और मै-2
मैने जवाब दिया :-"हाँ मै गा सकता हूँ।"

"जो गाना आता है, गाकर सुनाओ।" उनमें से एक बोला।

मैं मुकेश के गाये गानों को गाता था।मैने सस्वर यह गाना सुनाया

"तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सही।
तू नहीं और सही,और नही और सही।
बडी लंबी है जमीं, मिलेंगे लाख हंसी।
सारी दुनिया में सनम तू अकेला ही नहीं।
जाम आंखों के बहुत हैं, कहीं एक दौर सही।
तू नहीं और सही, और नहीं और सही-----।"

मोहम्मद रफी का भी गाया गाना सुनाया :-"मै जिंदगी का साथ निभाता चला गया।। हर फिक्र को धूँये मे उडाता चला गया।
बरबादियों का शोक मनाना फजूल था,
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया"।
इसके बाद उस दिन छुट्टी हो गई।

दूसरे दिन सबेरे ही राजन चौरसिया से भेंट हुई।उसका चेहरा उतरा हुआ था।उसने मिलते ही कहा कि वह यहां न रह पायेगा।वह वापस बनारस जा रहा है।वह एक ही रात की रैगिंग से ही विचलित हो गया था।हो सकता है उसके साथ ज्यादे ज्यादती हुई हो।कुछ लोगों की सहनशक्ति भी कम होती है।जो अपने घर पर अपने मां-बाप के साथ रहकर पढाई करते हैं वे ऐसी स्थिति में जल्दी टूट जाते हैं।मै तो घर से बाहर चार साल से रह रहा था अतः मै अंदर से मजबूत हो गया था।मैने राजन चौरसिया को लाख समझाया लेकिन उसने अपना इरादा नहीं बदला और वापस बनारस चल दिया।अब उसका इरादा बी.एच.यू. में ही ऐडमिशन कराने का था।

हास्टल में कुल छ ब्लाक थे।हर एक ब्लाक में अलग-अलग रैगिंग करने के एक या दो ग्रूप साथ-साथ या आगे पीछे चलते थे।रात को खाना खाने के बाद ही सीनियर छात्रों द्वारा रैगिंग के लिये बुलाया जाता था।

दूसरे दिन फिर मुझे रैगिंग के लिये बुलाया गया।इस बार भी पहले के ही क्रम को दुहराया गया।हां अंत मे पैंट खोलने कर नंगा होने के लिये कहा गया।मैने बिना झिझक ऐसा ही किया।अगर महिलाएं होती तो झिझक भी होती।पुरुषों के सामने भला क्या शरमाना ?
दूसरे दिन के रैगिंग के बाद मुझे फिर न बुलाया गया।

ज्यादे दिनों तक उसे ही बुलाया जाता था जो ज्यादा डरता या झिझकता था।पुरे जूलाई भर रैगिंग का काम कमोबेश चलता रहा।

दूसरे साल जूलाई में मैने भी रैगिंग लेने वालों का एक ग्रुप बना लिया।इस ग्रुप में के.के.राय,के.के. सिन्हा,दीनानाथ सिंह आदि थे जिसमें से के.के.राय और के.के. सिन्हा आई.आर.एस. में आये थे और अब रिटायर भी हो चुके हैं।दीनानाथ सिंह काशी हिंदू विश्वविद्यालय मे लेक्चरर हो गये थे।हमारे ब्लाक मे ही रघुनाथ महापात्र भी थे जिन्हें पिछले साल पद्मविभूषण मिला था।हम लोगों ने भी वैसे ही रैगिंग किया था जैसा हमलोगों के साथ हुआ था।उससे ज्यादा कुछ भी नहीँ।रैगिंग करके हमको भी तो पहले से चल रहे परंपरा को तो जारी रखना ही था।

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      जगदीश खेतान 
  गोरखपुर , उत्तर-प्रदेश 

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