वसंत उल्लास है

वसंत उल्लास है
बेफिक्र नींदे है 
बसंती अंगड़ाई
क्षितिज पर 
पीला प्रकाश सा... 
छाने लगा है 
मन के आकाश पर भी छाया है वसंत !

राग है रात में 
भोर में भी बसंत है 
वसंत उल्लास है
नवजीवन की आस है 
हल्के कागज की पतंग सा प्यारा बसंत !

बदलाव की एक ऐसी कोशिश 
बे रोक-टोक 
किसी के रोके ना रुकने वाला 
खूब शरारती छोरा बसंत !

उन्माद है 
उल्लास है
फूल सांस भर भर
जीना चाहते हैं 
हमको भी जीना चाहिए
भरपूर खिलते हैं
समझा रहा है देखो बसंत !

पुष्प के पुष्प के भार से 
लद गई डाल वृक्ष की
मानो पलके झुकी हो सुंदरी की
अचानक पिय के आ जाने से
प्रकृति नायिका है और नायक है वसंत !

कुदरत के कहने का 
अनोखा अंदाज है वसंत
नया जीवन भर रहा है 
सुबह शाम तरोताजा सी 
कोई फिल्मी गीत गा रहा है गुनगुना रहा है बसंत !

पक्षी सरल जीवन के पुरस्कार पा लेंगे
गीत के शब्द है शायद
फूलों के खिलने
उनके चटकने से 
रोमांचित हो जाए
वह आत्मा स्वतंत्र छोड़ दो
आओ, इस समृद्धि का स्वागत करें !

ध्यान से सुनो तो
कुदरत के अनोखे अंदाज 
आओ..... 
सारी चिंता शिकायतों को बहा दो 
जैसे पुष्प छोड़ देते हैं गंगा में !

पुराने विचारों का कर दो विसर्जन 
खुद जैसे पीले पत्तों ने किया था 
नए पत्तों के स्वागत में !

एक नई शुरुआत
चल पड़ो उन रास्तों पर 
जहां फूल जाते 
जी भर कर ले लो सांसे !

आज मन की हल्की पतंग को हम भी चलो खूब उड़ाए
कहकर वसंत दिल खोलकर खिल खिलाया था मैं भी हंस दी!

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      डॉ मेनका त्रिपाठी

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