ऋदि - सिद्धि है नारी |
सरस्वती, ऋदि - सिद्धि है नारी !
तु स्वयं में समाती उन हर रूपों को,
जितने सुने है देवी के रूप अवतारी !
नर के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में पकड़ बना,
मनोबल से वो अपने कभी नही हारी !
वो घर कितना सौभाग्यशाली होता है,
जहाँ गुँजी तेरे बाल रूप की किलकारी !
तुमने हर रूप में नर की जिदंगी संवारी !
तु सहनशीलता में मिसाल है पृथ्वी सी,
गौतम की अहिल्या या जनक दुलारी !
तुझ से ईश्वर को अर्द्धनारीश्वर कहा गया,
तुझ बिन सृष्टि अकल्पनीय और अधुरी !
निष्ठा में अनुसुया,तारा,राधा,सावित्री है,
लौटा लाई यमलोक से मौत तुझसे हारी !
राधेकृष्ण, सीताराम, उमापति नाम में समझो,
देव से पहले देवी के उच्चारण की दुनियादारी !
तु ममता, वात्सल्य जैसे गुणों की है यशोदा,
लुटाकर प्यार अपना बलैया और नजर उतारी !
सीमा लांघने पर छिना तुझसे जीवन का हक,
महिषासुर मर्द्धनी बन तुम्हे मौत के घाट उतारी !
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स्वरचित मौलिक रचना -सीमा लोहिया
झुंझूनू (राजस्थान)