Talk on period |
सब नॉर्मल चलता रहता है। अचानक लगता है कि चार-पांच किलो वजन बढ़ गया है ,पूरा शरीर एकदम से फूलने लगता है।भूख नहीं लगती पर अचानक भयानक कुछ भी खाने का मन करने लगता है खासकर फास्टफूड टाईप पेट भर जाता है पर मन नहीं भरता।
मुड स्विंग होते रहते है इतनी चिड़चिड़ाहट होती है कि किसी को भी बेवजह चिल्लाने लगते हैं।मन करता है जी भर कर लड़ लो किसी से। कई बार तो बेमतलब ही रोने लगते हैं।पूरी हड्डियों में इतना दर्द होता है कि लगता है कोई रोलर ही चला कर चला जाये..इतनी बेचैनी कि समझ ही नहीं आता कि गर्मी लग रही है या सर्दी.3-4दिनों तक नींद का अता पता नहीं होता।कभी पिम्पल निकल जाते है तो कभी लगता है कि स्किन में रैशेस हो रहे ...
फिर अचानक ध्यान जाता है कैलेंडर की तरफ ..ओह्ह तो ये दिन शुरू होने वाले है...फिर शुरू होता है दो से तीन दिन का कमर , पेट दर्द ..कमर से नीचे तो लगता है कि जान ही नहीं है और ब्लीडिंग का झंझट। ये समय ही ऐसा होता है कि हर लड़की कोसती है.. भगवान लड़की क्यों बनाया.अगले जन्म में लड़का ही बनाना। पांचवें दिन के बाद लड़की जैसे फिर से नयी हो जाती है।पर पिछले 24-25 दिनों में जो बॉडी रिकवर हुई होती है.. फिर से कमजोर हो जाती है।
फिर भी पाँचवे दिन के बाद लगता है सबकुछ बेहतर है ..अच्छा है..सब खूबसूरत है.....
पीरियड्स का ये फायदा है कि खराब चीजें बॉडी से बाहर चले जाती है और बॉडी नये सेल्स बनाने को फिर से तैयार हो जाती है... एक तरह से हर 28 दिन में लड़कियों की बॉडी कुछ नयी हो जाती है।
पर 25 दिन बाद फिर यही ...हार्मोन चेंजेस..मूड स्विंग..दर्द.. तड़प.. और फिर से सबकुछ नया।फिर भी वो पूरी कोशिश करती है इस पांच दिन को भी अपने 25 दिन की तरह ही प्रोडक्टिव बनाने की।क्योंकि लोगों के हिसाब से पीरियड्स बीमारी तो नहीं है जो ऑफिस से छुट्टी ली जाय या घर के काम छोड़ दिये जाय।
कहीं जाना होता है,कोई पूजा होती है या कुछ नया प्लान होता है लड़कियां पहले अपना डेट चेक करती हैं ..क्योंकि उसे पता है कि इस वक्त वो चाहकर भी फिजिकली और मेंटली नॉर्मल नहीं रह सकती।
एक नये जीवन का सृजन करने के लिये हर 28 दिन में लड़कियां ये सब झेलती है ..जब अपना शरीर ही भारी लगने लगता है..लड़की होना अभिशाप लगने लगता है... पर यही सब तो उसे उन 9 महीने के लिये तैयार करता है ..उस दिन उसे ये सारे दर्द सारी तकलीफ बेमानी लगती है...जिस दिन उसका फिर से जन्म होता है..एक माँ के रूप में।
सेनेटरी पैड की बहस और 5 दिन की झंझट से कहीं इतर है ये पीरियड..एक लड़की की सम्पूर्णता बसी है इसमें।
नहीं कुछ भी नहीं चाहिए.. ना लाइक ..ना कमेंट... बस इस वक्त में उसे थोड़ा सा केयर और आराम की जरूरत होती है इसका थोड़ा ख्याल रखियेगा,अगली बार कोई लड़की आपके सामने मेडिकल में पैड लेने जाएं तो मुंह दबाकर मत हँसियेगा। उसके जाने के बाद उसे देखकर कमेंन्ट मत करियेगा.क्योंकि यदि आपकी माँ को पीरियड्स नहीं आते तो आप पैदा ही नहीं होते...
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नेहा नन्दिता मिश्रा
रायपुर -छत्तीसगढ़